भिक्षु रूप में ‘ बुद्ध ‘
चीवर धारी ,
इस लोक में तुम,
सम्यक् सम्मबुद्ध ,
भिक्षु रूप में,
देने दर्शन आए हो।
भगवन् बुद्ध बन के,
मोह माया तज के,
अहं दूर कर के,
भिक्षु रूप में,
देने दर्शन आए हो।
तथागत बन के,
करुणा करने,
क्रोध मिटाने,
भिक्षु रूप में,
देने दर्शन आए हो।
बोधिसत्व बन के,
ज्ञान ग्रहण कर के,
तृष्णा मुक्त हो के,
भिक्षु रूप में,
देने दर्शन आए हो।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।