भाषा के झुरमुट
भाषा के झुरमुट
भाषा के झुरमुट में अनगिन,
शब्द हो गए लोप |
झड़े हुए पत्तों पर मौसम,
के हैं पाँव पड़े,
इतिहासों के पन्नों में हैं,
अनमन गाँव गड़े,
इसे कहें हम अपनी गलती,
कहें प्रगति का कोप |
चुभते प्रश्न लिए गीतों के,
शहरों में है राग,
लोकतंत्र की इन सड़कों पर,
सत्ता की है आग,
बैठ सुशासन की खिड़की पर,
देख रहा सब टोप |
संकट में है लोक-अस्मिता,
संकट में हैं बुद्ध,
संकट में गायों का कुनबा,
संकट में घी शुद्ध,
धरा, हवा सब हैं संकट में,
संकट में है ओप |
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ
ओप- चमक, आभा, मुख की सुंदरता