भावों की सरिता बही,
भावों की सरिता बही, भीगे आज कपोल ।
सिसकारी सब बोलती, नयना अधर न खोल ।।
नयना अधर न खोल, घोल रही रंग विरह के ।
अँसुअन हैं अनमोल, जिए कितने ग़म सह के ।।
कह दीपक कविराय, बढ़ी विपदा नावों की ।
वेग न सूझत भाय, बही सरिता भावों की ।।
दीपक चौबे ‘अंजान’