भावहीन
कभी
ह्रदय में न समाते थे
आज
मन के सारे भाव
इमोजी में समा जाते हैं,
ऐसा लगता है
जैसे
किसी दूसरे की लिखी रचना
को हम अपना
बताते हैं,
दिवंगत हुए
किसी प्रियजन की
फेसबुक वाॅल पे
व्हाट्सअप
स्टेटस में
फोटो चिपका देते हैं
और लिखते हैं
मिस यू पापा
मिस यू मम्मी
और एक रोने वाली
इमोजी लगाते हैं,,
दुःख
क्या इतना कृत्रिम होता है!
अपने हीं
घर में रहने वालों को
जन्म दिन की बधाई
सोशल मीडिया पर देते हैं
मैसेज प्राइवेट भी होते हैं,
खुशी
क्या दिखावा भर है,
विवाह के वर्षगांठ
की बधाई
पति पत्नी
एक दूसरे को
क्यूं
सार्वजनिक
देते हैं,
यह तो
उनके जीवन का
नितांत निजी निवेश
होना चाहिए,
ये कैसा प्रेम है
जो सार्वजनिक
होने पर ही
सच्चा होने की कसौटी पर
खरा उतरता है
मोबाइल की सत्ता ने
मानव की
बुध्दि पर
ऐसा किया है
अधिकार
कि सब हो रहे हैं
बुद्धि से परे
और कर रहे हैं वही
जो कर रहे हैं दूसरे,
यह
मोबाइल धारी जीवन
कुछ अनछुए प्रसंगों को भी
अनछुआ नहीं रहने देता!!!!!