भावना
आग-पानी भावना इन्सान सी है
इसलिए सागर उफ़नता है हमेशा
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देवता वो बन न पाया क्या करें
भावना में बह गया इन्सान था
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भावना ही मिट गई तो क्या रहा
देवता पत्थर हुआ फिर टूटकर
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भावनाओं के असर में जो रहा
अस्ल में वो ज़िन्दगी जीभर जिया
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