भावनाएं…
इतनी कमजोर और निकृष्ट क्यों हैं
आपकी प्रिय भावनाएं
जो ढह जाती हैं
मात्र सवाल पूछने से
जो बिखर जाती हैं
मात्र सच्चाई बोलने से
जो आहत हो जाती हैं
मात्र आपकी पोल खोलने से
बनाओ इन्हें भी मजबूत इतना
सह सकें दर्द की गहराई को
जिसे झेला है हमने सदियों तलक
बनाओ इन्हें भी मजबूत इतना
जो सह सकें मार पट्टियों की
झेला है जिसे ऊना कांड पीड़ितों ने
बनाओ इन्हें भी शसक्त इतना
कि गिर गिर कर चल सकें
जैसे चलते आए हैं मंज़िल तलक ।
वरना छोड़ो झूटमूठ का बहाना
और होने दो स्थापित समता को
जीने दो सभी इंसानों को
अपना जीवन मैत्री भाव से
मत घोलो जहर धर्म और जाति का
जिससे नष्ट होती है एकता
सामाजिक भाईचारा और बंधुत्व
प्रज्ञा करुणा शील की भावना ।
इसलिए प्रिय मित्रों
अपनी संकुचित और निकृष्ट
भावनाओं को समेटकर रखो
अपनी इच्छाओं के दायरे में
अपने घर,मकान की
बंद चहारदीवारी में
जहां बच सकेंगी आहत होने से
आपकी प्रिय भावनाएं।