*भारत भूषण जैन की सद्विचार डायरी*
भारत भूषण जैन की सद्विचार डायरी
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1986 में भारत भूषण जैन के मन में यह विचार आया कि क्यों न श्री कॅंवल कुमार जैन से भेंट करके उनकी हस्तलिपि में हस्ताक्षर सहित कुछ शेरो-शायरी अंकित कर ली जाए।
कॅंवल कुमार जैन को शायरी का शौक था। बृज नारायण चकबस्त उनके प्रिय शायर थे। उर्दू के शेर उन्हें कंठस्थ रहते थे। वार्तालाप के मध्य शेरो-शायरी की प्रस्तुति उनका स्वभाव था। भारत भूषण जैन और कॅंवल कुमार जैन के घर की दूरी भी ज्यादा नहीं थी। एक ही मोहल्ला ‘जैन स्ट्रीट’ था।
9 मार्च की तिथि को आपने अपनी सद्विचार डायरी का शुभारंभ कॅंवल कुमार जैन की हस्तलिपि में कुछ अच्छे विचारों के साथ शुरू कर दी। जैसी कि आशा की जा रही थी, कॅंवल कुमार जैन ने कुछ उर्दू शायरी डायरी पर अंकित की और अपने हस्ताक्षर तारीख के साथ कर दिए।
कॅंवल कुमार जैन एडवोकेट, रामपुर
दिनांक 9 मार्च 1986
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मत सुनो गर बुरा कहे कोई/न कहो अगर बुरा करे कोई/ रोक लो गर गलत चले कोई/बख्श दो गर खता करे कोई
मुसीबत में बशर के जौहरे मर्दाना खिलते हैं/ मुबारक बुजदिलों को गर्दिशे किस्मत से डर जाना
उपरोक्त पंक्तियों में जहॉं इस प्राचीन विचार को अभिव्यक्त किया गया है कि बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत कहो; वही दूसरी ओर उर्दू के शेर के माध्यम से यह बताया गया है कि जब विपत्ति आती है तब जहॉं एक ओर बुजदिल लोग भयभीत हो जाते हैं, वहीं दूसरी ओर निर्भय और धैर्यवान व्यक्तियों के कला और बुद्धि-चातुर्य की परीक्षा के द्वार इसी समय खुलते हैं।
भारत भूषण जैन की डायरी के इसी पृष्ठ पर वी. एस. यादव द्वारा लिखित है :
सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता
आर.एन. कंचन
24-7-87
प्रशिक्षक श्री रामचंद्र मिशन, रामपुर केंद्र लिखते हैं :
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मनुष्य की समस्त समस्याओं व बुराइयों का मूल है, अपने परम लक्ष्य (आत्म साक्षात्कार) से भटक जाना । जिसका एक निदान है सहज मार्ग अर्थात अपने जीवन में आध्यात्मिकता का पूर्ण विकास कर अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करना ।
आर.एन. कंचन का पूरा नाम राधे नारायण कंचन है। आप सुंदर लाल इंटर कॉलेज रामपुर में अंग्रेजी के सुयोग्य प्रवक्ता रहे। आध्यात्मिक विचारों के साथ जीवन जीना आपकी विशेषता है। आपने उचित ही मनुष्य जीवन का ध्येय आत्म-साक्षात्कार को अपने द्वारा व्यक्त सद्विचारों में अंकित किया है। सहज मार्ग के प्रशिक्षक होने के नाते जो ज्ञान का प्रशिक्षण आप देते रहे हैं, वही कार्यशैली डायरी पर शब्दों में उतर आई है।
महावीर प्रसाद जैन, 53 तिलक कॉलोनी, रामपुर, उत्तर प्रदेश दिनांक 3-4-88
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श्रीमान जी, प्रश्न आदर्श लिखने का नहीं, मनन और जीवन में उतारने का है। लिखने और बोलने वालों की कमी नहीं। यही सोच कर विराम
महावीर प्रसाद जैन उच्च कोटि के विचारक रहे हैं। साधनामय जीवन जीते रहे। भाषण कला में निपुण तथा सादा जीवन उच्च विचार के प्रतीक रहे हैं। डायरी के प्रष्ठों पर आपकी टिप्पणी ‘आचार ही परम धर्म है’- इस प्राचीन उक्ति को प्रकट करने वाली है।
श्रीमती मालती जैन , 53 तिलक कॉलोनी लिखती हैं :
परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला है।
इस पर भी 3-4-88 तिथि अंकित है।
दिनांक 22 3-89, कपूर चंद्र जैन, जैन स्ट्रीट, रामपुर उत्तर प्रदेश
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यह जीवन का चिरंतन सत्य है कि यह आत्मा अपने उत्थान और पतन का कर्ता स्वयं है। जो जैसा कार्य करता है, उसको वैसा ही फल मिलता है- यह सत्य कभी झुठलाया नहीं जा सकता। देखते हैं, खेत में जैसा बीज बोते हैं; वैसी ही फसल बोने वाले को मिल जाती है। मनुष्य जीवन के संबंध में भी यही बात है। घृणा से घृणा मिलती है और प्रेम भाव से प्रेम मिलता है और जैसे बीज की फसल बढ़ती है वैसे ही नफरत और प्रेम भाव की फसल बढ़ती है। इसीलिए आचार्यों ने कहा है कि जो तुम अपने लिए चाहते हो वही तुम्हें दूसरों के लिए चाहना चाहिए और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते वह दूसरों के लिए भी नहीं चाहना चाहिए। बस इसी में जीवन का सार है।
कपूर चंद्र जैन के विचार मनुष्य को सत्कर्मों के साथ जीवन बिताने की प्रेरणा देने वाले हैं। धर्म का सार आपने यही बताया है कि अपने साथ जैसा व्यवहार हम दूसरों से चाहते हैं, वैसा ही अच्छा व्यवहार हमें दूसरों के साथ भी करना चाहिए।
पारस दास जैन, खंडेलवाल बुक डिपो, मिस्टन गंज, रामपुर 5-10-91
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स्वावलंबन बनकर यथाशक्ति साधन विहीन की आवश्यकताओं की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना ही सच्ची प्रीति है। और यही जीवन की आधारशिला है।
पारस दास जैन खंडेलवाल साधनामय जीवन जीने वाले एक कर्मयोगी रहे हैं। दिनभर दुकान पर बैठते थे। व्यवसाय में निपुण थे। अपने परिश्रम और बुद्धि से आपने खंडेलवाल बुक डिपो को एक प्रतिष्ठित संस्थान की सर्वोच्च ऊंचाई पर पहुंचाया है। व्यवसाय करते हुए समाज की सेवा करना तथा जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार की ओर प्रयत्नशील रहना आपका स्वभाव था। जैन धर्म में आपकी गहरी निष्ठा थी। धार्मिक कार्यों में आजीवन संलग्न रहे।
मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज 12 मार्च 1996
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दीप को नहीं ज्योति को देखो/ शरीर को नहीं आत्मा को परखो/ महावीर का विश्वास कलम पर नहीं कदम पर था/ धन सिर की टोपी नहीं पांव की जूती है/ महावीर के सिद्धांत को कंठस्थ नहीं, हृदयस्थ करो/ जीवन को तमाशा नहीं, तीर्थ बनाओ
मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज उन विभूतियों में रहे जिनका सानिध्य भारत भूषण जैन को प्राप्त हुआ। समय मिला तो आपने उनके विचार भी अपनी डायरी में अंकित करके डायरी को अमूल्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुनि महाराज का एक-एक शब्द किसी सांचे में नपा-तुला ढला जान पड़ता है। जीवन में उतार लिया जाए तो जीवन सफल हो जाएगा।
18-1-97 को मुनि श्री समता भूषण ‘स्वयंसिद्ध’ शीर्षक से लिखते हैं:
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वाह्य शरण की करें न आशा,वे निज दीपक बन जाते हैं/आरुढ़ हुए सर्वोच्च शिखर पर, स्वयंसिद्ध हो जाते हैं
मुनि श्री समता भूषण जी की दो पंक्तियां मनुष्य को स्वयं ही दीपक बनकर अपना रास्ता तलाशने के लिए प्रेरित करने वाली हैं ।
पूरी डायरी भारत भूषण जैन के निकट संपर्क में आए उनके मोहल्ले-पड़ोस और सहकर्मियों के विचारों के साथ-साथ अध्यात्म जगत के महान प्रवचनकर्ताओं के सद्उपदेशों से सुशोभित हो रही है। कॅंवल कुमार जैन एडवोकेट की शेरो-शायरी से जो क्रम 1986 में अपने शुरू किया, वह अतीत के बहुमूल्य संस्मरण हैं। डायरी के पृष्ठ फटने लगे हैं, लेकिन आप यत्नपूर्वक सद्विचार डायरी को सुरक्षित रखे हुए हैं ।इन पंक्तियों के लेखक को आपने कृपापूर्वक उसकी दुकान (बाजार सर्राफा) पर आकर इतिहास की यह बहुमूल्य धरोहर देखने के लिए उपलब्ध कराई, इसके लिए आपका हृदय से धन्यवाद।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451