भारत की सिंहगर्जना
इस युग के प्रसिद्ध रहस्यदर्शी, योगी, दार्शनिक एवं चिन्तक ओशो रजनीश ने बेबाकी से यह घोषणा की है कि सभी आत्त्मकथाएं अहंकार की घोषनाएं हैं। गांधी, जयप्रकाश आदि कोई भी हो-सभी की आत्मकथाएं आत्मकथाएं कम एवं अहंकारकथाएं ज्यादा हैं। हालाकि विडम्बना यह रही है कि स्वयं ओशो रजनीश ने भी अपनी आत्मकथा अपने शिष्यों के समझ विस्तार से कही। उसकी इस आत्मकथा को नाम दिया गया “स्वर्णिम बचपन”। लेकिन ओशो के संबंध में यह तर्क दिया जा सकता है कि वे तो बुद्ध पुरुष थे। बुद्धपुरुष अहंकार का प्रदर्शन कहां करते हैं? बुद्धपुरुषों का अंहकार तो विली न हो गया था तो ओशो अपनी बचपन की आत्मकथा में क्या ब्यान करके गए हैं? उनके प्रेमी कहेंगे को ओशो ने युह सब अहंकारवश नहीं किया अपितु कारणवश किया है। क्या हुआ कि उपनिषद के मुनियों समान समाधिस्थ मानते हुए भी उपनिषद के मुनियों के विपरीत ओशो ने अपने नाम, अपनी प्रसिद्धि, अपने वैभव, अपने रहन-सहन, प्रचार एवं तौर-तरीकों का खूब प्रदर्शन दुनिया के सामने किया। उपनिषद के मुनियों ने तो अपनी अभिव्यक्तियों में कहां अपना नाम तक भी नहीं दिया है। बात यदि इस युग के गांधी, जयप्रकाश या अन्य नेताओं की की जाए तो ये सारे के सारे अपनी आत्मकथाओं में अपनी कमियों को बतलाकर भी उनको महिमामंडित करते रहे हैं। ये सभी इस मामले में परले दर्जे के चालाक व्यक्ति थे जो कि अपनी प्रसिद्धि से तो लोगो को अपना दिवाना बनाते ही थे इसके साथ ही अपनी महान भूलों से भी लोगों का शोषण करने से नहीं चुकते थे। ये तथाकथित महान व्यक्ति मानते हैं कि इनकी इन आत्मकाथाओं को पढकर दुनिया के लोग कुछ मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे। लेकिन गांधी की आत्मकथा का अध्ययन करके कितने कांग्रेसी सत्य के प्रयोग कर रहे हैं? ओशो के “स्वर्णिम बचपन” का अध्ययन करके कितने ओशो प्रेमियों ने अपने जीवन को स्वर्णिम बनाया है? जनसंघ या संघ या भाजपा के कितने लोगों अपने कुछ महापुरुषों की आत्मकथाऒं को पढकर राष्ट्र हेतु अपने जीवन को न्यौछावर कर दिया है? प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में ठोकर खाकर ही सीखता है न कि आत्म्कथा लेखक कुछ सिखाते हैं। जब जीवन में समस्याएं आती हैं तो व्यक्ति का विवेक, उसकी सूझबूझ, उसकी कार्यशैली, उसकी हिम्मत या उसका साहस ही उसका पथ-प्रदर्शन करता है न कि ये आत्मकथा लेखक कुछ सिखाते हैं। जब जीवन में समस्याएं आती हैं तो व्यक्ति का विवेक, उसकी सूझ्बबूझ, उसकी कार्यशैली, उसकी हिम्मत या उसका साहस ही उसका पथ-प्रदर्शन करता है न कि ये आत्मकथाएं। ठीक है आत्मकथाएं ठाली समय में दिल बहलाव का माध्यम तो खूब बन सकती है लेकिन इससे यह प्रचारित कर देना कि आत्मकथाएं भविष्य की पीढियों को रास्ता दिखालाने हेते जरुरी होना चाहिए-यह केवल इन आत्मकथाओं को बेचने का साधन मात्र है। साधारण व्यक्ति इस धूर्तता को समझ नहीं पाता तथा इनके चंगूल में फंसकर रह जाता है। आत्मकथा चाहे गांधी की हो, विनोबा की हो, जयप्रकाश की हो, नेहरु की हो, ओशो की हो, हिटलर आदि की हो या फिर रामदेव की-सब एक जैसी ही है। किसी अन्य के अनुसार हम अपने जीवन को कैसे ढाल सकाते है? यदि हमने यह अत्याचार अपने ऊपर कर भी दिया तो भी हमारा कोई हित होने वाला नहीं है। हम केवल और केवल इन धूर्त प्रकाशकों, लेखकों व पुस्तक वितरकों के गुलाम मात्र बनकर रह जाते हैं। किसी आत्मकथा, जीवनी या इस तरह की किसी किताब ने आज तक किसी व्यक्तो को महान नहीं बनाया है। व्यक्ति महान बनता है अपनी संकल्पशक्ति से, अपनी हिम्मत से, अपने विवेक से तथा अपने पुरुषार्थ से। तो बजाय इन सत्य के प्रयोग या स्वर्णिम बचपन के पढने के हमे अपनी क्षमताओं पर ध्यान देना चाहिए। अंधभक्त बनना गुलामी की जंजीरों में जकडा जाना है। किसी से कुछ सीखना भी है तो पूरे विवेक से सीखें, अंधभक्त बनकर नहीं। राजनीति, धर्म समाज परिवार, शिक्षा, विज्ञान, समाज सुधार, उद्योग, लेखन, साहित्य आदि सब कहीं नकाचियों की भरमार है। और एक अन्य खतरनाक बात और भी है। यदि इन अंधभक्तों या नकचियों को इनकी इन मूढाताओं के प्रति साचधान करो तो ये मरने-मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। राजनीति, धर्म, शिक्षा, समाजसुधार, साधना, योग या फिर विज्ञान इस प्रकार के अंधभक्तो से भरे पडॆ हैं। मात्र कुछ लोगो को छॊड दे तो सर्वत्र अंधभक्तो की भरमार है। जिस आर्य हिन्दू धर्म में टीका-टिप्पणी करना, आलोचना करना, वाद-विवाद करना, खण्डन-मण्डन करना, शास्त्रार्थ करना या जिज्ञासा करना आर्य हिन्दू धर्म का प्रमुख गुण अरबों वर्षों से चलाता आया है उसी आर्य हिन्दू धर्म के लोग इतने अंधभक्त या नकलची या इतने पाखंडी हो जाएंगे-हमारे मुनियों ने ऎसा कभी नहीं सोचा होगा। अपने महान कहे जाने वाले आदरणीय, शीर्ष, बुद्धपुरुष, या मुनियों का अपमान हम स्वयं कर रहे हैं। मुनियों का अपमान केवल विलियम हंटर, लार्ड मैकाले, मैक्सूलर, ग्रिफीठ, राथ, ह्विटनी, मोनियर विलियम, विल्सन आदि ही नहीं कर रहे हैं अपितु सायणाचार्य के सारे सनातनी चेले, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आदि तथा आजकल के काले अंग्रेज भी यह मुनि अपमान का कुकर्म कर रहे हैं। भारतवर्ष आहत है इनसे। क्या लाभ है यदि इन्होंने महान व्यक्तियों की जीवन-चरित्रों को भी पढा हो, उनकी आत्मकथाओं को भी ढूंस-ढूंसकर अपनी खोपडियों में भर लिया हो?
हम तो पिछली कई सदी से कछुए बन चुके हैं। हम किसी को कुछ कहेंगे नहीं। हम पर कोइ हमला करे, हमारी ईज्जत लूटे या हमारे साथ अनाचार करे, हम तो बुद्ध के उपदेशों पर अटल हैं। हम तो गांधी बाबा के कट्टर अनुयायी हैं। हम किसी को कुछ भी नहीं कहेंगे। हमारा राष्ट, हमारा धर्म, हमारा दर्शनशास्त्र, हमारी संस्कृति, हमारी जीवन मूल्य, हमारी शिक्षा, हमारा योग-ये सब नष्ट हो तो हो जाएं। हम कुछ न कहेंगे किसी को। हम किसी पर हमला न करेंगे, चाहे रामचन्द्र, कृष्ण, अर्जुन, भीम चन्द्रगुप्त मौर्य, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, समुग्रगुप्त, शिवाजी, बाजीराव पेशवा, सुभाष, सावरकर आदि ने कुछ किया हो-हम न करेंगे। हम तो गुरु गोवलकर के पक्के संघी अनुयायी हैं। पाकिस्तान हमारे सैनिकों का सिर काटे, हमारी सैनाओं के शिविर में घूस जाए, हमारे हवाई जहाजों का अपहरण करे-हम कुछ नहीं करेंगे। क्यों नहीं करेंगे-क्योंकि हमारे आदर्श विवेकानंद, गांधी बाबा या गोवलकर या नेहरु आदि हैं। क्योंकि हमारे आदर्श स्वामी विरजानंद, स्वामी दयानंद, सुभाष, सावरकर आदि नहीं हैं। पढाते रहो देशवासियों को सत्य के प्रयोग, भारत एक खोज, या फिर विवेकानंद द्वारा दिया गया शिकागों में दिया गया भाषण। पढारे रहो देशवासियों को संघ का दर्शन-जिसमें मरने-मारने का कोई सूत्र उपलब्ध नहीं है। पढाते रहो भारतवासियों को पंचशील का सिद्धांत। घोट्टा मरवाते रहो भारतवासियों को सेक्यूरवाद की थोथी बकवास। अहिंसा, करूणा, भाई-चारे, सह-अस्तित्व, अनाक्रंमण, शाश्वत प्रेम या भ्रातृत्व्भाव के एकतरफा उपदेश पिलाकर भारवासियों को कायरों का देश बनाते रहो। गरीब की जोरु सबकी भाभी का सशक्त उदाहरण यदि आपको चाहिए तो केवल भारत आपकी मदद कर सकता है। गांधी, नेहरु व अब मोदी तक की भारत में लम्बी श्र्रुखला है इस तरह के एकतरफा उपदेश देने वालों की। चुनाव पूर्व सिंहगर्जना करने वाले अब चुनाव के बाद बंदरघुडकी के लायक भी दिहाई नहीं पड रहे। चुनावपूर्व शौर्य, वीरता, गर्व, ओज, आदि की बातें करने वाले अब चुनाव के बाद गांधी बाबा के इतने पक्के चेले बन चुके हैं कि अब गांधी बाबा को भी हंसी आ रही होगी कि मैने स्वयं भी अपने इतना महान होने के संबंध में कभी सोचा भी नहीं था। कायरों ने अपनी सुरक्षा की राजनीति करने हेतु मेरा खूब प्रयोग किया है। क्या सेक्यूलरवादी, क्या साम्यवादी, क्या अल्पसंख्यकवादी, क्या दलितवादी तथा क्या संघी-सब के सब चालाक निकले हैं। सभी गांधी बाबा की पुस्तक सत्य के प्रयोग पढाते-पढाते अनेक वर्षो से असत्य के सफल प्रयोग कर रहे हैं। वाह रे मेरे भारतीय नकली शेरो! दिखावे के बादशाह लेकिन हकीकत में भिखारी भी नहीं। इस सबके बावजूद भी हम हिम्मत हारे नहीं हैं! भारत जागेगा एक समय जरुरु! हम अवश्य एक समय “सत्य के प्रयोग” की गांधी जी बकवास से पीछा छूटाकर अपने सनातनी वेदो को पढना शुरु करेंगे, उपनिषदों का अध्ययन करेंगे, दर्शनसूत्रों को अपनाएंगे, स्वामी दयानंद का सत्यार्थप्रकाश पढेंगे, सावरकर का भारत का स्वातन्त्रम समर पढेंगे तथा आचार्य अग्निव्रत का भौतिक विज्ञान के सूत्रों से लबालब “ऎतरेय ब्राह्मणभाष्य” पढेंगे। भारत अवश्य जागेगा। पूरी तरह से हमारा भारत कभी सो नहीं सकता। भारत यदि सो जायेगा तो जानो सारी धरा ही सो जायेगी।
-आचार्य शीलक राम