भारत का नवीन नारीवाद और उसकी नारी |
भारत एक ऐसा देश जो कृषि प्रधान तो है ही साथ ही साथ नारी प्रधान भी है | नारी प्रधान मै इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस राष्ट्र के कोने-कोने में नारी के प्रभाव की छाप मिलती है , हिन्दू धर्म में नारी के हर रुप की पुजा की जाती है चाहे वह बेटी के रुप में हो या मां के रुप में | अगर यह अतिशयोक्ति न हो तो हर भारतीय के लिए भारत एक जमीन का टुकडा न होकर उसकी मातृभूमि है उसकी भारत माता है |
जितना मेरा अध्ययन है महिलाओं को शोषण से बचाने और उनके सभी तरह के नागरिक और मानवीय अधिकारों की बात करना मूल रुप से नारीवाद माना जाता है | यू तो नारीवाद मूलत: पश्चिम की विचारधारा है क्योंकि उनके समाज में एक बहुत बड़े कालखण्ड में महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है और वह आज भी हो रहा है जैसे उदाहरण के लिए अनेक युरोपियम देशों में महिलाओं के साथ बलात्कार को सामान्य सी घटना समझा जाता है और इस पर आधुनिकीकरण का पर्दा डाले रखा गया है |
यदि हम भारत की बात करें तो प्राचीन भारत महिलाओं के अनेकों योगदानों से भरा पड़ा है जिसमें महिलाएं लेखन , शिक्षा , तपस्या , व्यापार , रक्षा , अनुसंधान , सेवा आदि हर क्षेत्र में उत्कर्ष पर रही हैं | मगर बीच के इसलामीक आक्रमण के कालखण्ड में महिलाओं के इस चेतना का हास हुआ जिसे आज के भारत में यह समझा जाने लगा है कि भारत सदैव से ऐसा ही था इसीलिए रेप इन देविस्तान जैसी बातें कही जाती हैं | आज के भारत में नारी की जो मूल समस्याए हैं वो है अच्छी शिक्षा , स्वास्थ्य , वित्तीय आत्मनिर्भरता , रोजगार के समान अवसर , जागरुकता आदि | मगर आज भारत की नारीवादी महिलाओं के लिए यह मुद्दे गौण हैं उनके लिए नारीवाद का मतलब हो गया है कपडे न पहनना या छोटे पहनना या बड़े पहनना , शादीशुदा होते हुए भी गैर मर्दों से संबंध बनाने की समाज में स्वीकार्यता लाना या चरमसुख की प्राप्ति के लिए अधिक से अधिक पुरुषों से संबंध बनाने की स्वीकार्यता पाना , पुरुषों की अंधी बराबरी करना आदि |
जिस देश की करोड़ों की आबादी गरीबी रेखा से नीचे हो जिनके पास दो वक्त का भोजन भी सरकार के अनुदान पर हो , महिलाओं में अशिक्षा , संवैधानिक और कानूनी जागरुकता का आभाव , महिला आधारिक स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव हो उस देश की नारीवादी महिलाओं के ऐसे विषय न केवल हास्यास्पद हैं बल्कि भारतीय नारीवाद पर भी सवाल खड़े करते हैं | सबसे पहले तो यही की क्या भारत में नारीवाद सही पथ पर है? और क्या इसके विषय वास्तव में समस्त भारत की नारियों के लिए प्रासंगिक है? आदि |
मुझे निजी तौर पर किसी भी नारीवादी महिला या पुरुष के किसी भी विचार से कोई आपत्ति नही है यह उनकी निजी प्राथमिकता हो सकती है और वह उन विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्रत हैं | मेरा आशय समस्त भारतीय नारीवादी परिचर्चा से है जो स्वयं को नारी के बेहतरी के लिए सार्थक होना चाहता है |