Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jul 2021 · 3 min read

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है

धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता दोनों एक है या अलग ,वास्तव में कहना काफी जटिल और दुरूह भी है ।
या कहे आज समाज इन्ही दो सिद्धान्तों के बीच उलझ सा गया । खैर समस्या जटील और विवादित भी है ।

भारत एक बहुभाषी ,बहुआयामी , बहुसांस्कृतिक, जैसी विलक्षण गुण रखने वाला देश है ।,इनके अपने अपने धर्म ,रीति रिवाज, परम्परा, संस्कृति ,रहन सहन पहनवा सब एक दूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं । होंगे भी ,विविधताओं वाले देश है । किंतु धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता के मूल्यांकन में राज्य ,क्षेत्र, समाज,संस्था और भी दार्शनिक, इतिहासकार, राजनीतिज्ञ , के अपने अपने विचार हैं । कोई इहलोक पर बल देता है, तो कोई परलोक पर ।
कहना मुश्किल है । भारत के संघीय ढ़ाचे वाले सँविधान के प्रस्तावना में भी जिक्र किया गया है ,42 वें सविंधान सशोधन के तहत पंथनिरपेक्ष शब्द को जोड़ा गया , और वही “एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ(1994) ” मामले में भी उल्लेख किया गया कि धर्मनिरपेक्षता सविंधान के आधारभूत लक्षणों या मूल ढ़ाचे में निहित है , संसद चाह कर नही बदल सकती।

खैर कुछ शब्द अपनी प्रकृति में चंचल होते हैं।चूंकि उनका कोई निश्चित अर्थ नही होता ,इसलिए सभी लोग अपनी अपनी सुविधानुसार उसका अर्थ निकलते हैं ।सर्वविदित है कि सेकुलरिज्म का विचार सर्वप्रथम इंग्लैंड में पनप जिसकी एक लंबी पृष्ठभुमि है । मध्यकाल में जन्मा चर्च का अधिपत्य ,जिसे अंधकार युग कहा गया । 14 वीं शताब्दी में शुरू हुए पुनर्जागरण के परवर्ती चरणों मे हुये भौगोलिक खोज , धर्म युद्ध, प्रोबोधन युग का प्रभाव , वैज्ञानिक दृष्टिकोण , तर्कवाद तथा बुद्धिवाद दृष्टिकोण जैसी परिक्रिया अस्तित्व में आई जिसने आधुनिकता की तरफ अपने मुख को अग्रसित कर चर्च के प्रभाव को तोड़ने में मदद की ।

इनके प्रभाव धीरे धीरे 16 वीं शताब्दी के आसपास दृष्टिगोचर होता है , इस शताब्दी में कई विचारक जैसे मैक्यावली , जॉन ऑस्टिन, कार्ल माक्स, ने अपने विचारों के माध्यम से समाज मे चर्च के बढ़ते हुए प्रभाव को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । जैसे मैक्यावली के अनुसार ” राजा को अब चर्च के अधीन नही बल्कि चर्च को राजा के अधीन रहना चाहिए” ।

वही कुछ ऐसे भी विचारक थे जो परलोक पर ध्यान न देकर इहलोक पर अत्यधिक बलदेते थे । उद्धाहरण स्वरूप होलिओक और ब्रैडलोफ का मानना है कि बाइबिल में वर्णित “इब और आदम ” की कहानी के अंधविश्वास ने ईसाई समाज को इतना अधिक नुकसान पहुँचाया हैं कि कई अन्य युध् भी उतना नुकसान नही पहुँचा सके । और इस धारणा के उलझन में पड़कर कैथोलिक इसाई लगातार इहलोक को खारिज करते रहे और परलोक की कल्पनाओ में डूबे रहे जिसका परिणाम अंधकार युग के रुप में दिखा।
कुछ समर्थक येभी कहते है कि , नैतिक सिद्धान्तों को धर्म से नही जोड़ना चाहिए , उनके लिए विज्ञान ही सब कुछ है । और नए नए अनुसनधनो के माध्यम से मानव जीवन को बेहतर बनाया जाया जाए। और शायद यही समर्थक भारत पहुँचा ,परन्तु भारत के समाज की स्थितया बिल्कुल भिन्न थी , कई धर्मो का सार, कई धर्म के अपने कानून ,और ऊपर से अंग्रेज के ईसाइयत धर्म को अंगीकार करने के ख़ौप ने कही धर्मनिरपेक्षता के आड़ में “समान नागरिक सहिंता ” को जन्म दिया । खैर यह मुद्दा भी इसी से जुड़ा है कि लोग देश मे पंथनिरपेक्ष रहे या धर्मनिरपेक्ष के विचारों को अंगीकार करे । क्योकि सभी धर्मो में अपने धर्म के प्रबंधन हेतु विशेष प्रवधान है , अपने धर्म के रीति रिवाज ,शादी विवाह ,उत्तराधिकारी – वसीयतनामा के अलग अलग प्रवधान हैं । और ये कहना जटिल है की कोई धर्म कैसे अन्य धर्मो के प्रति सहिष्णु होगा । जबकि धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य ” धर्म से निरपेक्ष होना है ” अर्थात राज्य या कोई व्यक्ति किसी धर्म के साथ अपना सम्बन्ध ना रखे । और वही पंथनिरपेक्ष में राज्य किसी धर्म से दूर भागने के बजाय सभी धर्मों को समान तवज्ज्ब देगा । अर्थात किसी व्यक्ति कोई फर्क नही पड़ना चाहिए कि दूसरा व्यक्ति किस मजहब का अनुयायी है ।अतः गांधी जी के शब्दों में ” सर्वधर्म समभाव ” ।

Language: Hindi
Tag: लेख
924 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ज़माना इतना बुरा कभी नहीं था
ज़माना इतना बुरा कभी नहीं था
shabina. Naaz
भारत कभी रहा होगा कृषि प्रधान देश
भारत कभी रहा होगा कृषि प्रधान देश
शेखर सिंह
मेरे हिस्से का प्यार भी तुझे ही मिले,
मेरे हिस्से का प्यार भी तुझे ही मिले,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बाल कविता : रेल
बाल कविता : रेल
Rajesh Kumar Arjun
जेठ सोचता जा रहा, लेकर तपते पाँव।
जेठ सोचता जा रहा, लेकर तपते पाँव।
डॉ.सीमा अग्रवाल
रात तन्हा सी
रात तन्हा सी
Dr fauzia Naseem shad
सावित्रीबाई फुले और पंडिता रमाबाई
सावित्रीबाई फुले और पंडिता रमाबाई
Shekhar Chandra Mitra
18--- 🌸दवाब 🌸
18--- 🌸दवाब 🌸
Mahima shukla
झरोखा
झरोखा
Sandeep Pande
धोखा देकर बेवफ़ा,
धोखा देकर बेवफ़ा,
sushil sarna
आज़ाद भारत का सबसे घटिया, उबाऊ और मुद्दा-विहीन चुनाव इस बार।
आज़ाद भारत का सबसे घटिया, उबाऊ और मुद्दा-विहीन चुनाव इस बार।
*प्रणय*
अपने वही तराने
अपने वही तराने
Suryakant Dwivedi
3939.💐 *पूर्णिका* 💐
3939.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
समय बीतते तनिक देर नहीं लगता!
समय बीतते तनिक देर नहीं लगता!
Ajit Kumar "Karn"
अक्सर यूं कहते हैं लोग
अक्सर यूं कहते हैं लोग
Harminder Kaur
"राहे-मुहब्बत" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
"एक नज़र"
Dr. Kishan tandon kranti
ज़मीर
ज़मीर
Shyam Sundar Subramanian
प्रेम
प्रेम
Satish Srijan
पर्व दशहरा आ गया
पर्व दशहरा आ गया
Dr Archana Gupta
रोशनी का रखना ध्यान विशेष
रोशनी का रखना ध्यान विशेष
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
जिंदगी रूठ गयी
जिंदगी रूठ गयी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
श्याम बदरा
श्याम बदरा
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
सिर्फ़ सवालों तक ही
सिर्फ़ सवालों तक ही
पूर्वार्थ
World Books Day
World Books Day
Tushar Jagawat
महायोद्धा टंट्या भील के पदचिन्हों पर चलकर महेंद्र सिंह कन्नौज बने मुफलिसी आवाम की आवाज: राकेश देवडे़ बिरसावादी
महायोद्धा टंट्या भील के पदचिन्हों पर चलकर महेंद्र सिंह कन्नौज बने मुफलिसी आवाम की आवाज: राकेश देवडे़ बिरसावादी
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
ख़ियाबां मेरा सारा तुमने
ख़ियाबां मेरा सारा तुमने
Atul "Krishn"
** लोभी क्रोधी ढोंगी मानव खोखा है**
** लोभी क्रोधी ढोंगी मानव खोखा है**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
रात……!
रात……!
Sangeeta Beniwal
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
आर.एस. 'प्रीतम'
Loading...