भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं ॐ
भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं ॐ
वृंदावन में पले-बढ़े हम यमुना नदी में तैरने जाते थे प्रतिदिन “कैसीघाट” पर. कैसीघाट श्रेष्ठ था। यह बहुत लंबा, बहुमंजिला, साधुओं, संतों और आगंतुकों के लिए कई खुले कमरे।
एक दिन हमें कैसी घाट पर सितार बजने की आवाज सुनाई दी। वृंदावन में वाद्य संगीत, भजन, कीर्तन सुनना आम बात थी। लेकिन यह सितार की आवाज हम रोज शाम को सुनते थे, और जब हम छुट्टियों में सुबह जाते थे, तब सुबह भी सुनाई देती थी। हम “आ गया कोई सर फिरा” (MADCAP) टिप्पणी करते थे।
कुछ समय बाद हमारे विद्यालय में “तुलसीदास जयंती” मनाने का कार्यक्रम था। हमने लोगों ने इस “सिर फिरा” को जयंती में लाने का फैसला किया और अपने शिक्षक को, घाट के सिरफिरे सितार वादक को लाने के लिये विनती की और, हमें उन्हीने अनुमति दी ।
उसी शाम हम घाट के कमरों में उसका तलाश करने गए, आवाज हो रही थी
घाट पर चलने के साथ-साथ और अधिक विशिष्ट हों रहा था। हम केसीघाट से चीरघाट (जहाँ कृष्ण ने गोपियों के कपड़े पेड़ पर लटकाए थे) तक पहुंच गये, पर इतने लंम्बे घाट औऱ इतने कमरों में कहां से ध्वनि आ रहीं थी , समझ नहीं पा रहें थे. फिर वापस केसीघाट के तरफ चले , यह वादक इन दोनों घाट के बीच में कहीं थे, हम चूक गए क्योंकि हम जल्दी में थे। तो अब हम धीमी गति से शुरू हुए और फिर घाट के एक भीतरी कमरे के पास पहुँचे, जहां ध्वनि स्पष्ट था, पूरे क्षेत्र में गूंज रहा था. हम रुक गए।
अचानक एहसास हुआ, हमें तो पता ही नहीं कि इस सरफिरे वादक को क्या और कैसे आमंत्रित करना है। हम सब ने मिल कर फैसला किया कि पहले देखते हैं. और देखने के लिए चुपचाप कमरे के पास गए।
तो हमने कमरे में दीये की रोशनी में देखा एक भारी जटा-धारी अर्ध वस्त्र धारी संत, लंबी दाढ़ी वाला सितार के समान वाद्य बजा रहें है, लेकिन उस वाद्य में दो गुमब्ज (तूमबे) है, जब कि सितार में केवल एक ही गुमब्ज (तुम्ब) होती है। हमने तब तक ऐसा वाद्य कभी नहीं देखा था, इसलिए नाम भी न जानते थे.
हमें नहीं पता कि वह क्या राग बजा रहें थे , लेकिन एक बात हमें स्पष्ट थी कि वह बुद्धिमानी से वाद्य यंत्र को बड़ी निपूर्णता से ध्वनि को संकल्प कर रहें थे, जो हमें अति प्रभावित कर रहा था …। अचानक उनहोंने बजाना बंद कर दिया और हे भगवान, हम सभी जड़ित हों अचंभित हों गए।कारण….
क्योंकि उस वादक ने उस वाद्य को बजाना बंद कर दिया था और अपने सामने रख दिया था और वाद्य यंत्र की आवाज अगले 15 से 20 मिनट तक चलती रहीं !!!!!!
हम तरह-तरह की बातें करने लगे और उस वादक ने हमारी सुन ली; वह उठकर बाहर गये और हमें पकड़ लिया। उनकी अचानक हुई कार्रवाई ने हमें स्तब्ध कर दिया और हमने डर के मारे बिना किसी संधर्व विवरण के उन्हें अपने कार्यक्रम में आमंत्रित कर दिया।
उन्होंने मना कर दिया। तब हमने उन्हें हाथ जोड़ कर हमारे स्कूल में तुलसीदास जयंती उत्स्व के बारे में बताया औऱ अनुरोध किया। इस बात के साथ कि आखिर में वह राजी हो गये।
अब हममे थोड़ा साहस आ गया औऱ पूछा कि आप वाद्य तो बजा नहीं रहें पर वाद्य संगीत अभी भी कैसे चल रहा लेकिन बहुत झिझक के साथ।
उन्होंने मुस्कुराते हुए हमे अंदर कमरे में आमंत्रित किया, औऱ हमें एक टेप रिकॉर्डर बैटरी संचालित दिखाया, तथा उस वाद्य के विषय में भी बताया.
यह वीणा रूद्र वीणा या विचित्र वीणा के नाम से जाना जाता हैं. ये वीणा भारतीय वाद्य में काफ़ी पुराना वाद्य हैं. इस वीणा का उल्लेख ऋग्वेद में किया गया हैं, यह माना जाता है कि रुद्र वीणा भगवान शिव द्वारा देवी पार्वती की सुंदरता के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में बनाई गई थी। माना जाता है कि इस वाद्य यंत्र को भगवान शिव ने सबसे पहले बजाया था, और यह भी माना जाता है कि इसमें आध्यात्मिक शक्तियाँ होती हैं।
फिर उन्होंने हमसे हमारे समारोह और समय के बारे में पूछा, तब उन्होंने हमें बताया कि वह रात 9 बजे शुरू करेंगे. तथा उन्हें साथ ले जाने के लिए आना होगा और हमें दो अच्छे तबला वादक व्यवस्था करने के लिए भी कहा.
ओह उनकी प्रस्तुति अति सुंदर एवं अपूर्व थी, वह हम छात्रों, शिक्षकों और अन्य संगीतकारों से बता कर रहे थे, यह कि ध्वनि क्या है और यह शरीर को फिर से जीवंत करने के लिए कैसे प्रभावित करती है भीतर की ऊर्जा।
सारे हॉल में वयस्क से बालक तक मंत्रमुग्ध, सम्मोहित हों शांत… रात्रि
10 बजे से सुबह 4 बजे तक सब अपने स्थानों पर स्थमभित अवस्था में..
अंत में वह रूद्र वीणा को कंधे के लेकर खड़े हों गये, एवं उन के साथ समूर्ण हाल में उपस्थित जन भी खड़े हों गये, औऱ वह
“हरि ओम जय जगदीशा हरे” के साथ समारोह को समाप्त किया.
यहां तक कि जब यह समाप्त हो भी गया तो हम सब मुग्ध जड़ित अवस्था में बधे रहें । हमने जो अनुभव किया यह अपूर्व ध्वनि हमारे ह्रदय में एक सुखदायक झुनझुनी सनसनी के साथ हमारे पूरे शरीर को ध्वनि गुंजन के शाश्वत से स्पंदन कर रहें थे।
कुछ समय वाद हम सममोहित अवस्था से जाग गए जब “वादक” ने हमें संबोधित किया।
यह “सर फिरा” महान बाबा पार्वतीकर जी ,एमेस्सी एवं पीएचडी ध्वनि में थे। उन्होंने कभी भी कोई सार्वजनिक/रेडियो आदि प्रस्तुति नहीं दी, सिवाय हरिदास जयंती के, जिसके वे वृंदावन में अध्यक्ष बने।
यह पहली बार है जब किसी ने हमें ॐ ध्वनि की शक्ति के बारे में बताया, यह कैसे होता है? औऱ शरीर, मन और आध्यात्मिक रूप से प्रभावित करता है।
मैं स्वयं, अभ्यास के माध्यम से इस प्रभाव का बोध किया। एवं मेरा स्वं का ॐ पुनरुत्थान की व्यक्षा निम्न हैं…
यह ध्वनि नहीं है बल्कि ब्रह्मांड का गुंजन है, और ये गुंजन हर ग्रह द्वारा वापस परावर्तित होते हैं। हमारे ब्रह्माण्ड अरबों आकाशगंगाएँ, ग्रह एवं सूर्य मंडल भी हैं।
बहुत आम आदमी की भाषा में यह गुंजन अरबों घूर्णन आकाशगंगाओं द्वारा उत्पन्न होता है। और यहाँ से ब्रह्म की रचना आरम्भ होती है।
प्रत्येक व्यक्ति के शरीक अवशिष्ट शक्ति इसी से प्रज्वलित होता है। यह अवशिष्ट शक्ति प्रत्येक द्रव्य में ब्रह्म है।
यह वही अप्राप्य अवशिष्ट शक्तियां 33 कोटी अवशिष्ट शक्ति ब्रह्म-नाद से निर्मित हैं।
यह गुंजन हर जीव के शरीर को गुंजीत कर रहा है, चाहे वह गतिशील जीव हो या जड़ित जीव।
जिससे शरीर स्पंदित रहता है तथा जिससे जीवन की कार्यप्रणाली को बनाए रखने के लिए ऊर्जा उत्पन्न होती है।
इसलिए यह हमारा कर्तव्य, धर्म बन जाता है कि हम अपने शरीर को गुंजन के कंपन को सहन करने के लिए शरीर को कार्यात्मक स्वस्थ अवस्था में रखें।
दूसरे शब्दों में यह जीवन को सक्रिय करने के लिए पूरे शरीर को एक ध्वनि अभ्यागा
(Massage) देता है।
ॐ तट सत : ??
परिशिष्ट :
1. रूद्र वीणा एक बहुत ही कठिन साधना हैं, फलस्वरूप आज कल इस वीणा के साधक बहुत कम हों गये हैं.
2. ॐ औऱ संगीत के सरगम उच्चारण के बिधि में कोई अंतर नहीं हैं.
दोनों नाभि से प्रारम्भ होते अंत तक एक ही अंतरंग पथ लेते हुये, होंटो पर समाप्त होते हैं. ??