भाई -बहन का प्यारा बंधन : रक्षाबंधन (लेख)
भाई-बहन का प्यारा बंधन : रक्षा बंधन
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जी चाहे बारिश की स्याही,बनूँ कलम में भर जाऊँ।
मन के भाव पिरो शब्दों में,तुझको पाती लिख पाऊँ।।
नेह सरस हरियाली में भर, धानी चूनर लहराऊँ।
रेशम धागे राखी बन मैं,वीर कलाई इठलाऊँ।।
ग्रीष्म की तपिश से राहत दिलाता सावन जब धरा को छूता है तो हरित कांति से आच्छादित सारी सृष्टि लहलहाती उमंग भरे मन से हिलोरें लेती प्रेम में सराबोर हो जाती है।सावन का हर दिन पवित्रता की धूनी मल कर भक्तिमय हो जाता है। ऐसा लगता है मानो स्वर्ग से देवता धरती पर उतर कर महादेव की आराधना कर रहे हों। व्रत, हरियाली तीज, नागपंचमी रक्षाबंधन, हरितालिका तीज जैसे तीज -त्योहार , मेले -उत्सव ,मेंहदी ,गीत सावन को सर्वश्रेष्ठ मास बना देते हैं। एक ओर जहाँ बनी-ठनी सुहागन सजी-धजी प्रीतम की लंबी उम्र की कामना करती हैं वहीं दूसरी ओर श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन बहनें भाई की लंबी उम्र की कामना करती हुई उसकी रक्षार्थ कलाई पर रेशम की डोरी बाँधकर अपार खुशियाँ हासिल करती हैं। रक्षाबंधन के आगमन से पहले ही भाई की याद में एक से एक नायाब राखी खरीदने को आतुर बहनों के मन की मुराद पूरी करने और भाइयों की कलाई की खूबसूरती बढ़ाने के नज़रिये से बाज़ार की दुकानों की रौनक बहनों की खुशियों में चार-चाँद लगाती नज़र आती हैं।इस त्योहार की ख़ासियत है कि खून का रिश्ता न होने पर भी किसी गैर व्यक्ति की कलाई पर रक्षासूत्र बाँध कर बहनें उसे आत्मीय रिश्ते के अटूट बंधन में बाँध लेती हैं। इस तरह अनेकता में एकता का परिचायक भाईचारे का यह त्योहार हमें चित्तोड़ के राजा की विधवा रानी कर्णवती और मुगल सम्राट हुमायूँ की याद दिला देता है।मध्यकालीन युग में राजपूतों व मुगलों के बीच संघर्ष चल रहा था।तभी गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह की फौज के चितौड़ की ओर बढ़ने की खबर मिलने पर रानी कर्णवती ने खुद को बचाने के लिए राखी भेज कर हुमायूँ से मदद माँगी।रानी की राखी पाकर हुमायूँ ने उन्हें बहन का दर्जा देकर चित्तोड़ को सुरक्षा प्रदान की। ये बात अलग है कि हुमायूँ के पहुँचने से पहले ही रानी कर्णवती जौहर की ज्वाला में कूद कर सती हो गई थीं।राखी के कच्चे धागों में वो ईश्वरीय शक्ति है कि आपसी मन-मुटाव, लड़ाई-झगड़ा मिटा कर भाई -बहन समर्पित भाव से एक-दूजे के हो जाते हैं।आज भी जब राखी का पावन त्योहार आता है तो मेरे सामने कलाई बढ़ाए वो मासूम बालक अजय सिंह आकर खड़ा हो जाता है जिसका बड़ा भाई फौजी था और माँ सौतेली। बड़ा भाई देश की रक्षा के लिए सीमा पर लड़ता था तो मासूम अजय सिंह अपने भाई की वापसी का सपना सँजोए हालात से लड़ता था।प्रेम व आत्मीयता की भूख के कारण वह मुझे टकटकी लगाए देखता और नज़र मिलने पर मुस्कुरा देता। एक शाम वो मेरे साथ बैंडमिंटन खेलने नहीं आया ,पूछने पर पता चला कि उसे तेज बुखार है ,कल से उसने कुछ नहीं खाया है । मेरा जी कचोट कर रह गया । बंदिशों की बेड़ियों में बँधे होने के कारण उसको देखने भी नहीं जा सकी। तीन दिन बाद घर की बाउंडरी के पास लगे पेड़ों की आड़ से झाँकता एक चेहरा दिखाई पड़ा। मैं दौड़ कर गई ,देखा तो अजय था।इससे पहले की मैं उससे से कुछ पूछती उसने मेरी ओर कागज़ की गेंद फेंकी और तेज कदम बढ़ाता हुआ आँख से ओझल गया । मैंने देखा वो उसका ख़त था जिसमें लिखा था…”दीदी, मैं पढ़ना चाहता हूँ। कल हाई स्कूल का फॉर्म भरने की लास्ट डेट है । भैया के मनी ऑर्डर के सारे पैसे माँ रख लेती हैं।मैंने फीस के लिए रुपये माँगे तो उन्होंने मुझे जलती लकड़ी से मारा, बहुत दर्द हो रहा है।दीदी, मेरी फीस भर दो। जब कमाऊँगा तो सबसे पहले अपनी दीदी के लिए साड़ी लाऊँगा। मैं थोड़ी देर बाद आपसे मिलने आऊँगा। मेरी आस मत तोड़ना।” पत्र पढ़ते-पढ़ते आँखें छलछला आईं। मैंने अपनी पॉकेट मनी के रुपयों में से उसे ढ़ाई सौ रुपये दिए । खून के रिश्ते से बड़ा ये आत्मीयता का रिश्ता था जिसने हमें भाई-बहन के पावन रिश्ते में जोड़ दिया था। विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ाते ,अपनेपन की गाथा कहते बहन-भाई के इस अद्भुत, अनूठे, अनुपम त्योहार”रक्षा बंधन की अनंत बधाई व शुभकामनाएँ !!! डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)