*भर कर बोरी रंग पधारा, सरकारी दफ्तर में (हास्य होली गीत)*
भर कर बोरी रंग पधारा, सरकारी दफ्तर में (हास्य होली गीत)
भर कर बोरी रंग पधारा, सरकारी दफ्तर में
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(1)
साहब ने आधी बोरी को, अपने घर भिजवाया
बची हुई आधी बोरी में, नकली रंग मिलाया
होली से पहले यों होली, है साहब के घर में
(2)
होशियार था लिपिक, बाल्टी भरकर रंग उड़ाया
बोरा काटा और सिल दिया, कोई भॉंप न पाया
लीक न जाने हुई खबर, कैसे संपूर्ण नगर में
(3)
जॉंच बिठाई शासन ने तो, एक कमीशन आया
नाम कमीशन था तो उसने, ढेर कमीशन खाया
बचा रंग ले गया जांच अधिकारी अपने कर मे
(4)
जनता बोली रंग कौन खा गया, हमारा धन था
रंग लगाने का होली में, अपना भारी मन था
नहीं पड़ेंगे कभी रंग के, सरकारी चक्कर में
भर कर बोरी रंग पधारा, सरकारी दफ्तर में
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कर = हाथ, टैक्स
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451