भरोसा ___ कहानी
मेहमानों का आना जारी था। पंडित सुखराम के मझले बेटे पुनीत का विवाह जों था।
पंडित सुखराम ग्राम कनेरा के प्रतिष्ठित पंडित के साथ-साथ ब्राह्मण होने के कारण पूरे गांव में पूजनीय थे ।
आज उनके घर में खुशियों की शहनाई बज रही थी ।
सब अपने अपने हिसाब से मेहमानों की आवभगत में लगे थे ।
दोपहर होते-होते सभी कार्यक्रमों से निवृत्त होकर पुनीत की बारात समधी श्री दयाराम जी के गांव पालनपुर पहुंचती है ।
सभी रीति-रिवाजों के साथ पुनीत का विवाह गायत्री से संपन्न होकर बारात पुनः कनेरा पहुंचती है।
नई नवेली दुल्हन अपने सपने सजाए अपने स्वामी के साथ पीछे-पीछे अपने ससुराल में प्रवेश करती है गायत्री का परिवार पुनीत के परिवार से कुछ ज्यादा ही सक्षम था गायत्री ने जब देखा कि मेरे ससुराल में वह सुविधाएं नहीं हैं जो कि उसे मायके में मिली थी परंतु गायत्री ने इस बात का एहसास सास-ससुर तो दूर अपने पति पुनीत को भी नहीं होने दिया।
धीरे-धीरे गायत्री और पुनीत का स्नेह बढ़ता गया ससुराल में मिली कमियों को नजरअंदाज कर गायत्री हमेशा अपने पति पुनीत को समझाती रहती _ स्वामी आप कभी यह मत सोचना कि मुझे यहां किसी बात की कमी है।
मैं तुम्हारी अर्धांगिनी हूं ,और तुम्हें भरोसा दिलाती हूं कि तुम्हारा पग पग पर साथ निभाऊंगी।
पुनीत जो कि कर्मठ तो था पर उसकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह अपने परिवार की वह सभी आवश्यकताएं पूरी कर सके जो जरूरी थी ।
किराए का मकान ,शौचालय का अभाव, पानी की समस्या, इन सब अव्यवस्थाओं से पुनीत मन ही मन सोचता _ मेरी पत्नी गायत्री क्या सोचती होगी कि मेरे घर वालों ने मुझे किस घर में ब्याह दिया ।
एक दिन पुनीत ने गायत्री से कह दिया कि मैं तुम्हारे लिए जल्दी ही स्वयं का मकान बनाऊंगा ।
गायत्री बोली _ जब हमारी स्थिति ठीक हो जाएगी तब खरीद लेंगे।
जल्दी किस बात की है।
वह दिन भी आया और पुनीत ने अपने घर परिजन के लिए आवास खरीद ही लिया।
सब प्रेम से रहने लगे पर यह सुख ज्यादा दिन नहीं चला और घर की महिलाओं में आपसी तकरार होने लगी।
गायत्री अपनी जेठानी देवरानी सब को समझाते हुए भरोसा दिलाती पर उनके समझ में नहीं आया ।
इसी चिंता में पुनीत दुखी रहने लगा।
गायत्री ने उसे भरोसा दिलाया आप चिंता मत कीजिए
एक दिन सब ठीक हो जाएगा।
समय बदलने में देर नहीं लगती गायत्री का त्याग समर्पण और भरोसा उसके काम आया और वह शासकीय सेवा में चुन ली गई ।
गायत्री हमेशा अपने आराध्य की आराधना में लगी रहती ।
और उसी के भरोसे अपने पति पुनीत को भी आश्वस्त करती रहती ।शासकीय सेवा के कारण गायत्री को अपना ससुराल छोड़ना पड़ा।
अपने पति के साथ उसे दूर जाना पड़ा और वही नौकरी करने लगी ।
बाहर रहकर भी वह अपने ससुराल के प्रति चिंतित रहती है उसे भरोसा था कि एक ना एक दिन परिवार में फिर से एकता हो जाएगी ।
वास्तव में गायत्री का भरोसा अपने इष्ट पर प्रबल था।
वक़्त बीतता रहा गायत्री का तबादला कराकर पुनीत पुनः अपने गांव आ गया।
थोड़े समय बाद घर में फिर से भरोसा कायम हो गया,
एवम् पूरा परिवार प्रसन्नता से रहने लगा।।
**कहानी सीख देती है कि अपना भरोसा कभी नहीं खोना चाहिए **
_ विशेष _ कहानी पूरी तरह काल्पनिक है।।
राजेश व्यास अनुनय