भरत कुल 6
भाग 6
अब सुशीला माँ स्वस्थ हो रही थी। बड़ी बहू ने तन मन धन से अपनी सास की सेवा की थी ।अतःसुशीला की दिनचर्या अब सामान्य हो रही थी। बड़ी बहू पर उसे बड़ा अभिमान था। उसका गुणगान करते सुशीला थकती न थी ।उसके प्राण बड़ी बहु ने सेवा करके बचाये थे। अतःवह बहुत खुश थी। अब वह सेठ जी पर भी पर ध्यान देने लगी। सेठ जी की उदासी अब छटने लगी थी ।अब सुशीला ने अपने बेटों के बारे में सोचना बंद कर दिया था। संकट के समय उसके साथ केवल सेठ जी और उसकी बड़ी बहू थे। बड़ी बहू के दोनों पुत्र पुत्रियों ने बड़ी मां एवं बाबा की बड़ी सेवा की थी। बाबा भी अपने पोते पोतियो पर जान छिड़कते थे। किरण अपनी मां का आज्ञाकारी पुत्र था। वह अपनी मां की हर एक बात मानता ।उसकी देखभाल किया करता ।किरण बहुत पढ़ा लिखा नहीं था। किंतु, उसके संस्कार बहुत कुलीन थे। बाबा एवं बड़ी मां किरण को बहुत चाहते थे। किरण की मां का तर्क था-
बहुत से लोग पढ़े -लिखे हो कर अनपढ़ होते हैं। उनमें शुभ संस्कारों का अभाव होता है ।बाबा आठवीं पास है ,किंतु उनका जीवन किसी राजा से कम नहीं। अतः शिक्षा के स्तर पर जीवन स्तर निर्भर नहीं करता। जीवन स्तर सुधारने हेतु सुसंस्कारी, आज्ञाकारी एवं उत्तरदायित्व वहन करना अधिक आवश्यक है।
समय के साथ किरण अनुभवी होने लगा। उसे अपने पिता का बाबा के प्रति गैर जिम्मेदार व्यवहार बहुत कष्ट पहुंचाता था ।वह अपनी बहन हर्षा से विचार-विमर्श कर चुप हो जाता ।अपने पिता के विरुद्ध आवाज उठाने की उसमें हिम्मत नहीं थी ।किरण और हर्षा अब यौवन की दहलीज पर खड़े थे। किरण अब अठारह वर्ष एवं हर्षा सोलह वर्ष के हो गए थे। दोनों में समाज के प्रति उत्तरदायित्व निभाने का भाव था। उसके चाचा किशोर को इनसे कोई लगाव नहीं था, ना ही उसके पापा कौशल को किसी की परवाह थी।
किरण अब सेठ जी के साथ हिसाब-किताब सीख रहा था। वह कुशाग्र बुद्धि का था। वह हिसाब किताब में हो रही गड़बड़ी आसानी से पकड़ लेता, और उनका समाधान भी ढूंढ निकालता। सेठ जी अत्यंत प्रसन्न होते। धीरे-धीरे किरण सारा हिसाब किताब रखने लगा।किंतु, उसके पापा उसमें एक बड़ी बाधा थे, उससे कौशल अनावश्यक रुपए की मांग करता ,ना देने पर झगड़ा ,गाली गलौज पर उतर आता।विवश होकर बाबा के मान सम्मान की रक्षा हेतु वह कौशल को कुछ धन अवश्य दे देता। किन्तु उसका हिसाब लिखना ना भूलता। समय-समय पर बाबा को सूचित भी कर देता ।बाबा उसके पापा का हाल जानते थे, किंतु किरण पर उन्हें अटूट विश्वास था। वह कुछ ना कहते ।
हर्षा अब सयानी हो गई थी। उसके हाथ पीले करने की चिंता बाबा एवं बड़ी मां को होने लगी। बड़ी बहू इस संबंध में राय देना उचित नहीं समझती थी ।जब तक बड़ी मां व बाबा जीवित हैं ,उसे कोई चिंता नहीं थी। उसके अभिभावक ,माता-पिता वे ही थे।