भय
भय
गहन निशा भयभीत कर रही।
कोई नहीं सहारा देता।
खोज नहीं कोई है लेता।
कोई भी है मीत अब नहीं।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
भय
गहन निशा भयभीत कर रही।
कोई नहीं सहारा देता।
खोज नहीं कोई है लेता।
कोई भी है मीत अब नहीं।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।