भय
भय एक काल्पनिक मनोदशा है , जो भविष्य में होने वाले जोखिम के प्रति मस्तिष्क में निर्मित परिकल्पना है।
जीवन के विभिन्न चरणों में घटित परिदृश्य से विचलित मस्तिष्क में अवधारणाओं के निर्माण से प्रेरित एक असुरक्षा भाव है , जो जोखिम से होने वाली हानि से स्वयं निरापद रखने की प्रेरणा है।
भय के भाव की गंभीरता एवं तीव्रता का आकलन व्यक्तिगत संज्ञान एवं व्यवहारिक प्रज्ञा शक्ति पर निर्भर करता है।
दृढ़ संकल्पित भाव युक्त परिपूर्ण आत्मविश्वास से भविष्य के जोखिम का आकलन कर भय का सामना करने के लिए स्वयं को तैयार करना , जोखिम उठाने की क्षमता का विकास करता है।
इसके विपरीत भविष्य में होने वाले जोखिम का आकलन किए बिना भय का सामना करना दुस्साहस की श्रेणी में आता है।
भय निर्माण के अनेक कारक हैं , जैसे रूढ़िवादिता धर्मांधता , कपोल कल्पित अवधारणाएं एवं सामाजिक मूल्य , समूह मानसिकता , परिकल्पना निर्मित मानसिक अवरोध, तर्कहीन विवेचनाऐं , अशिक्षा , भ्रामक प्रचार,छद्म एवं मायाजाल , दमन ,
अपराध बोध , कल्पित प्रतिरोधविहीन भाव , परिस्थितिजन्य असहाय भाव , अतीत की दुर्घटनाओं के फलस्वरूप मस्तिष्क में होने वाले स्थायी प्रभाव एवं कुंठाएं ,स्वसुरक्षा हेतु आत्मबलविहीन भाव , भविष्य के प्रति असुरक्षा भाव इत्यादि हैं।
मनुष्य के जीवन में भय उसके वर्तमान एवं भविष्य को प्रभावित करता है, एवं उसके द्वारा लिए गए निर्णय में प्रमुख भूमिका निभाता है।
सामान्यतः भय का भाव स्वसुरक्षा भाव का जनक है।
परंतु इसका अतिशयोक्त भाव मनुष्य की सोच को प्रभावित कर उसकी प्रगति में बाधक है, एवं उसकी जोखिम उठाने की क्षमता को क्षीण करता है ।
अतः यह आवश्यक है कि भय के मूल कारण का संज्ञान लेकर पूर्वाग्रहों , अवधारणाओं एवं परिकल्पनाओं से मानसिकता को निरापद रखकर तर्कपूर्ण विवेचना की कसौटी पर भय की गंभीरता एवं तीव्रता का आकलन कर भय से मुक्त रहने का सुरक्षा भाव विकसित किया जाए।
जिससे , मनुष्य में जोखिम उठाने की क्षमता का विकास हो सके और भय का कारक उसकी व्यावहारिक कार्यक्षमता को प्रभावित कर उसकी प्रगति में बाधक न बन सके।