भटकता ही रहा दर दर
भटकता ही रहा दर- दर ,कहीं मैं भीख ना पाया
मोहब्बत के सिवा मैं और कुछ भी सीख ना पाया
मिली बदनामियां , आंसू व गम तेरे लिए लेकिन
स्वयं को हार कर भी ,आपको मैं जीत ना पाया।
शक्ति त्रिपाठी देव
भटकता ही रहा दर- दर ,कहीं मैं भीख ना पाया
मोहब्बत के सिवा मैं और कुछ भी सीख ना पाया
मिली बदनामियां , आंसू व गम तेरे लिए लेकिन
स्वयं को हार कर भी ,आपको मैं जीत ना पाया।
शक्ति त्रिपाठी देव