भजन
अकेली छोड़ कर मुझको, कहाँ ब्रज राज जाते हो।
इरादा है तुम्हारा क्या पता भी चले हमको
रचाई रास कुंजों मे तुम्हारे साथ मे हमने
किये थे खेल लेकर आज मोहन बो तुमने तो
तुम अपनी नित्य लीला को बताओ क्यु भुलाते हो।
हुआ अनुराग अब सच्चा नही हम भूल पाएंगे
पता क्या चल रहा मोहन तुझे कैसे भुलायेंगे
बने ऐसे निष्ठुर मोहन नही नजदीक आते हो।
तुम्ही सर्वस्व स्वामी हो कि घन प्यारे कैन्हिया हो
विरह की सेज मे डूबी तुम्ही हमको सुलैया हो
खिवैया हो मुरारी तुम क्यों मेरी हंसी बनाते हो
अकेली छोड़ कर मुझको कहाँ बृजराज जाते हो।