भगवान् कहाँ है – गीता में बताया गया है
गीता को पढ़ते पढ़ते ये समझ आ गया की भगवान् किसी मंदिर में नहीं हम सभी के दिल में है जिसे ह्रदय बोलते है। लेकिन हमारे अंदर का लालच है जो हमें मंदिर तक खींच लेता है। सवाल ये है की मंदिर जाना गलत है क्या ? तो जवाब है की मंदिर हमें जाना चाहिए खुद को शांत करने के लिए और जिस भगवान् का मंदिर है उनकी जीवन के बारे में जानना चाहिए जिससे हम उनके पदचिन्हो पर चलने की कोशिश करे और उनकी ही तरह एक दूसरे के लिए या फिर समाज और इस दुनिया की भलाई के लिए काम करे। लेकिन हम मंदिर जाते है बस माथा टेकने और धुप अगरबत्ती दिखाने। उस समय भी हमारा पूरा ध्यान भगवान् पर नहीं होता। तो आप ही बताइए मंदिर जाने से क्या फायदा ?
गीता में श्री कृष्ण ने कहा है की वो सभी प्राणी के हृदय या आत्मा में निवास करते है लेकिन लोग उन्हें बाहर ही खोजने में इधर उधर भटकते रहते है। अकसर लोग अपनी मन्नत पूरी करने की इच्छा से जाते है या फिर पूजा करते है और एक नहीं बहुत सारे भगवान् की करते है। इसी उम्मीद में की कोई भगवान तो हमारी इच्छा पूरी कर ही देंगे। और शायद इसी वजह से लोग हजारो या लाखो की संख्या में भगवान के दर्शन के लिए ऐसे मंदिर जाते है जिस मंदिर का नाम बहुत अद्धित विख्यात है और ऐसी जगह न जाने कितनी ऐसी घटनाये घटती है जिसमे लोगो की जान भी जाती है। भगवान् के दर्शन कैसे सिर्फ वही जाकर होगा। हम सभी के घर में भी तो मंदिर है भगवन उसमे भी है लेकिन हमारे अंदर का लालच है जो बोलता है की देख उसके साथ सब कुछ अच्छा हो रहा है क्युकी वो उस जगह के उस मंदिर गया था और फिर हम भी वही जाने की ठान लेते है। किसी को अच्छी नौकरी चाहिए ,किसी को परीक्षा में पास होना है , किसी को बहुत पैसा चाहिए ,किसी को घर चाहिए। ऐसे बहुत चीजे है जिसकी चाहत लेकर हम न जाने कहाँ कहाँ नहीं जाते। जबकि गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कर्म कर।