भगवत गीता से (जीवन प्रश्नों के उत्तर)
भगवान कौन
तत्व जो रहा गगन में व्याप्त,
वही तो कण-कण में है व्याप्त।
तत्व जो तेरे अंदर आत्म,
वही तो है सब का परमात्म।
ईश्वर कहांँ रहता है ?
सर्वव्यापी, घट-घट में व्याप्त,
जगत के कण-कण में है रम्य।
आत्म और परमात्मा है एक।
बोध से हो पाते हैं गम्य।
सभी जड़ चेतन में भगवान,
मान मम कथन सत्य तू मान,
प्रकृति के कण-कण में भगवान,
उसे ही परम शक्ति तू जान।
मेरा जन्म क्यों हुआ ?
किए थे तूने जो भी कर्म,
वही तव जीवन के आधार।
करेगा वर्तमान में कर्म,
उठाएगा नवजीवन भार।
दुनिया में दुख क्यों हैं ?
रखा नश्वर चीजों से प्रेम,
सदा की नश्वर में आसक्ति।
रहा भ्रम, इनमें ही है सुख,
इन्हीं से है सुख की उत्पत्ति।
अनश्वर से यदि रखता प्रेम,
सदा रहता जीवन में क्षेम।
हृदय में रहती स्थित शांति।
आत्म- मन दोनों में विश्रांति।
मैं कौन हूं ?
नहीं है तू यह नश्वर देह,
नहीं तू बुद्धि, भ्रमित संदेह।
अजर तू अमर बंधनातीत,
अनश्वर आत्मा, तुम्हीं, विदेह।
हम ईश्वर तक कैसे पहुंचें?
हमें अनुभव करना यह तथ्य,
वही मुझ में, जो तुझ में बंधु।
उसे हम देख सकें सर्वत्र,
वही है महाकृपा का सिंधु।
मुझे क्या करना चाहिए?
करें सद् कर्म, सदा हे मित्र!
कर्म पर ही, अपना अधिकार।
कर्म परिणामों से न जुड़ें,
फलों पर नहीं कभी अधिकार।
अतः तू सबकी चिंता छोड़,
कर्म कर, फल की चिंता छोड़।
इसी से पाएगा तू त्राण,
व्यथित मत कर, तू अपने प्राण।