भक्त और भगवान।
भक्ति के रस को चखने के लिए एक बार अवश्य नज़र दे।
चिलचिलाती धूप थी,कलुवा घर से अपने दोस्तों के साथ निकल पड़ा था हाथ मे थैला लिए,तन पर मटमैले कपड़े उन लड़कों के ऊपर काले बादल से छाए थे।
पर क्या फ़र्क पड़ता है,उनके मुख पर एक गज़ब सी ख़ुशी थी मानो अभी ही बादल झमाझम बरस पड़ेंगे।
कलमकर रोज़ उनको देखता था पर आज कुछ नया सा था,कुछ अलग सा था। उनका जोश देखते बनता था पर हा एक अंतर जरूर था आज कबाड़ वाले झोले के स्थान पर छोटी छोटी झिल्लियां थी ,रंग बिरंगी फूलों सी।
कलमकार ठहरा बड़ा ही उत्सुकी स्वभाव का चल पड़ा कलुवा और उसके दोस्तों के पीछे।
पर कलमकार असहज महसूस कर रहा था,उसे आदत नही थी 44 45 डिग्री तापमान में चलने की ,वही दूसरी ओर कलुवा और उसके दोस्त बेबाक मस्त चले जा रहे थे मानो सावन के मौसम में मोर मदमस्त हो के नाच रहे हों।
आज के अंतर को जानने के लिए कलमकार पसीने से तार तार हो चुका था,पर उसके मन मे बस एक सवाल था कि ऐसी गलाने वाली गर्मी में कलुवा और उसके दोस्त कैसे बर्फ़ सी ठंडक लिए अपने गंतव्य की ओर बढ़े चले जा रहे थे।
गर्मी की जलन और बर्फ की ठंडक दोनों साथ चल रहे थे,अचानक कलमकार के कानों में कुछ ध्वनि सुनाई दी शायद कोई भजन बज रहा था।
पसीने को गमछे से पोछते हुए कुछ दूर और आगे चलने पर वो भजन साफ़ सुनाई देने लगा –
“सुबह शाम आठों याम यही नाम लिए जा।।
ख़ुश होंगे हनुमान राम राम किये जा।।”
लखबीर लाखा के भजनों को कलमकार ने पहले भी सुना था पर आज जो बिजली उसके शरीर मे दौड़ी थी वह अलग सा एहसास दिला रही थी।
वो भी अब कलुवा के दोस्तों की भांति मस्त हो चुका था उसे भी अब बर्फ़ की ठण्डी का एहसास होने लगा था,44 45 डिग्री का तापमान मानो अब उसे शिमला की वादियों का एहसास दिला रहा था।
कलमकार को अब कुछ-कुछ समझ आ रहा था,समझते समझते वह अब पंडाल के पास पहुँच चुका था,गर्म-गर्म पूड़ियाँ और कद्दू आलू की सब्जी लोग लाइन में लग कर ले रहे थे,पर कलमकार को कलुवा और उसके दोस्त नज़र नहीं आ रहे थे,इधर उधर नज़र उन्हें ढूंढने लगी थी। नज़रों ने उन्हें लाल शरबत के पास देखा वह शरबत उन्हें किसी अमृत से कम नहीं लग रहा था।
शरबत के बाद कलुवा का समूह पूड़ी पर टूट पड़ा था,और बीच-बीच मे बड़े ही जोश से जय श्रीराम जय हनुमान के जोश भरे नारे पूरे पंडाल में गूंज रहे थे।
कलमकार को आज के अंतर का रहस्य समझ आ गया था,उसे यह भी समझ आ गया था कि सच्ची भक्ति में जो शक्ति है वो किसी और में नहीं।
इसका एहसास कलमकार को आज खुद हो चुका था की गर्मी में कैसे भक्ति की ठंडी ने उसे ओढ़ लिया था।
कलमकार ने भी प्रसाद ख़ूब चखा और आज जैसा स्वाद उसे शायद ही पहले कभी मिला था।
उधर कलुवा और उसका गैंग अगले पंडाल की तरफ़ बढ़ चुका था और उनके हाथों की झिल्लियां अब पूड़ी सब्ज़ी से भरी हुई थी।
#ज्येष्ठ_माह के 4 #मंगलवार कलुवा और हर भक्त के लिये किसी वरदान से कम नही थे।
यह 4 5 दिन उनके परिवार के लिए शायद सबसे सुखद दिनों में से एक होते थे।
कलमकार के मन को आज यह भी सिद्ध हो चुका था बिना भक्त भगवान कुछ नहीं और बिना भगवान भक्त कुछ नहीं।
श्रीराम के पूरे काज न होते अगर हनुमान जी उनके साथ न होते।
और ठीक उसी प्रकार हनुमान जी का कोई अस्तित्व न होता अगर श्रीराम उनके भगवान न होते।
किसी ने क्या खूब कहा है -दुनिया चले न श्रीराम के बिना और श्रीराम न चले हनुमान के बिना।
ज्येष्ठ माह के तीसरे मंगलवार की सभी को शुभकामनाएं।
एक बार जोर से बोल दे-जय श्रीराम जय हनुमान????
#राधेय