भक्तों की तथाकथा (भाग-3)
आपको याद होगा कि वर्ष 2017 में तुअर दाल के दाम आसमान पर चढ़ गए थे. 60 रुपए की तुअर दाल 200 को पार कर गई थी. त्राहि-त्राहि मची हुई थी. आखिरकार सवा महीने के बाद महाराष्ट्र सरकार का दिल पसीजा और उसने बाहर की आयातित दाल को शहर के चंद स्टोरों में 100 रुपए के दाम पर बेचना शुरू किया. उन चंद स्टोरों में सीताबर्डी स्थित ‘अपना भंडार’ भी एक है. मेरे स्टाफ के एक सीनियर मिस्टर एक्स (गत वर्ष रिटायर्ड हो गए हैं) एक दिन आॅफिस पहुंचे. अपना कंप्यूटर खोले. हमेशा गंभीर दिखनेवाले उनके चेहरे पर विजयीभाव साफ झलक रहा था. उस वक्त मुझे उनकी खुशी का कारण समझ में नहीं आ रहा था. करीब 20 मिनट बाद मेरे एक अन्य सीनियर मिस्टर वाई पहुंचे जो जस्ट उनकी बाजू की सीट में बैठते हैं. वे अपने कंप्यूटर खोलने ही जा रहे थे कि विजयीभाव से लबालब और अपनी खुशी किसी को बता देने के लिए बैचेन मिस्टर एक्स ने मिस्टर वाई की कुर्सी को अपनी ओर करते हुए बोले-‘‘अरे भैया, आज मैंने अपना भंडार से तुअर दाल लेकर आया. एक घंटा लगा, बड़ी भीड़ थी. आज करीब डेढ़ बजे लेकर आया. आते ही श्रीमतीजी से बोला आज ही इसे बनाओ. खाना बना भाई. खाया अरे मैं क्या बताऊं क्या टेस्टी है….अच्छा भाई, अच्छी गलती भी है!!!’’ अपनी इस खुशी को उन्होंने कई बार इस अंदाज में सुनाया जैसे उन्होंने कोई बहुत भारी काम किया हो.
देखिए यह वही सज्जन हैं जब 2014 में तुअर दाल का भाव 40 रुपए से बढ़कर 48 रुपए हुआ था, तब ऐसी हायतौबा मचा रहे थे कि अगर इन्हें सोनिया गांधी या मनमोहन सिंह मिलें तो उन्हें कच्चा चबा जाएं. अब वही शहर की किसी चयनित दुकान से एक घंटा लाइन में लगकर 100 रुपए में एक किलो दाल लाकर खुश हो रहे थे. खुशी ऐसी कि मन में समा नहीं पा रही थी, वे अपनी खुशी अन्य लोगों को शेयर करने के लिए बैचेन थे. उनके चेहरे पर साफ छलकती हुई देखी जा सकती थी. इसे ही तो कहते हैं अंधभक्ति.
आपको पता होना चाहिए कि जब 2014 का चुनावी अभियान चल रहा था जब मिस्टर बाहुबली कहा करते थे- मनमोहनसिंह जी, अगर राजनीतिक माद्दा है तो महंगाई 48 घंटे में रोकी जा सकती है. इसके लिए वे तीन उपाय भी बताया करते थे-1. वायदा बाजार खतम करना 2. आयात-निर्यात नीति का त्वरित क्रियान्वयन करना 3. महंगाई राहत कोष की स्थापना करना. लगभग डेढ़ साल तक तुअर दाल का दाम आसमान पर ही चढ़ा रहा लेकिन सरकार कुछ न कर सकी.