भक्ति एक रूप अनेक
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
मित्रो आज आपको हम भक्ति के भिन्न भिन्न स्वरुप के विषय में जानकारी देते हैं।
” भक्ति एक रूप अनेक ”
1 भक्ति जब भूख के साथ संसर्ग आती है तो वह
व्रत बन जाती है।
2 भक्ति जब जल क्षुधा प्यास के साथ संसर्ग आती है तो वह चरणामृत बन जाती है।
3 भक्ति जब कार्य के साथ संसर्ग आती है तो वह
कर्म बन जाती है।
4 भक्ति जब नाच के साथ संसर्ग आती है तो वह
नृत्य बन जाती है।
5 भक्ति जब शिक्षा साथ संसर्ग आती है तो वह
अध्यन बन जाती है।
6 भक्ति जब व्यवहार के साथ संसर्ग आती है तो वह
रिश्ता बन जाती है।
7 भक्ति जब दोस्ती मित्र के साथ संसर्ग आती है तो वह
प्रेम बन जाती है।
8 भक्ति जब वायु के साथ संसर्ग आती है तो वह
सुगंध बन जाती है।
9 भक्ति जब गायन के साथ संसर्ग आती है तो वह
कीर्तन बन जाती है।
10 मित्रों और अंत में भक्ति जब व्यक्ति के साथ संसर्ग आती है तो वह
मानवीय ऊर्जा बन जाती है।
और यही मानवीय संवेदना ऊर्जा जब निराकार के संसर्ग में समर्पित होती है तो आनन्द ही आनन्द होता है फिर अभी दुःख कष्ट उस परम आत्मा में तिरोहित हो जाते हैं।