” बढ़ गये हैं जीत कर ” !!
साध कर निशाने हम ,
चल पड़े हैं जीत कर !!
चीर कर अंधेरों को ,
लक्ष्य सभी भेदे हैं !
आतंकी , अधमों के ,
सीने भी छेदे है !
रिपुदल के खेमों में ,
गढ़ चले हैं जीत कर !!
घर में ही घुस कर के ,
मात हमने एसी दी !
किरकिरी हुई जग में ,
छिन गई अब है हँसी
ध्वस्त कर ठिकाने वे ,
चढ़ गये हैं जीत कर !!
घुटनों पर बैठोगे ,
हाल वो करेगें ही !
नाश हो आतंक का ,
आज यह चहेगें ही !
भारती को है नमन ,
बढ़ गये हैं जीत कर !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )