बड़े बड़े लिख्खाड़
दोहा
कविता लिखने चल पड़े ,बड़े धुरंधर वीर ।
दाँव-दाँव दें पटखनी ,पकड़े अपना धीर ।।1
लिखते ही नित जा रहे ,बड़े-बड़े लिख्खाड़ ।
कविता पर कविता धरे ,लेप रहे हैं माड़ ।।2
कविता चुटकी खेल भर ,पल भर में तैयार ।
नहीं शिल्प का ज्ञान अब ,करें शब्द व्यवहार ।।3
रसा धार उतरी धरा ,लिए चमकता भाल ।
कविताई अब चल रही ,बेढ़ंगी नित चाल ।।4
कथ्य भाव क्या शिल्प अब, उड़ा रूप से रंग ।
कविता के नित रचयिता ,करें अंग से भंग ।।5
कवि -कवयित्री पाँव को ,जमा जन्मते भाव ।
कविता में दंगल करें ,मन में रखें दुराव ।।6
कविता अब नित रो रही ,विद्वानों के बीच ।
कहती स्वर्णिम दौर ला ,कर पकड़े हैं नीच ।।7
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
मौलिक स्वरचित सृजन
4/3/2022