ब्रज भाषा में होली रसिया
आइये ब्रजभाषा के रसिया में बरसाने की होरी कौ आनंद लें ।
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होरी बरसाने की
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ग्वाल बाल संग लिये कन्हैया
नंदगाम ते धायौ है ।
राधा के संग होरी खेलन
बरसाने कूँ आयौ है ।।
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बैठ कुण्ड पै छान घोट कै
लै गुलाल कस फैंट लई ,
गली साँकरी में कान्हाँ की
फिर राधा ते भेंट भई ,
घेर लई है गली रँगीली
गाल गुलाल लगायौ है ।
राधा कै संग….. (1)
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इतते उड़ै गुलाल अबीरन की
उतते भर मूँठ चलैं ,
किच्ची दै-दै मटकैं ग्वाला
उत गोरिन के गूँठ हलैं ,
भर-भर सिसकी गोप चिढावैं
धूमस खूब मचायौ है ।
राधा कै संग…..(2)
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ग्वाल बाल है मस्त मटक रह्ये
नाँचैं रँगी गुजरिया रे ,
घूँघट दिये उघार फार दईँ
गोटा जरी चुनरिया रे ,
तंग भईँ गोपिन नै अपने
हाथन लट्ठ उठायौ है ।
राधा कै संग …..(3)
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लट्ठ थाम कै जब गोरिन नै
दिये तड़ातड़ ग्वालन पै ,
उकडू बैठे उछरैं सिगरे
लौठी झेलीं ढालन पै ,
याई ठौर पै मार री भाभी
कह विनकूँ उकसायौ है ।
राधा कै संग …..(4)
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पिछन न पाईँ रे होरी में
को गोरी को कारी रे ,
एक रंग में रँग गये सिगरे
होरी में नरनारी रे ,
प्रेम रंग कान्हाँ राधा नै
दोउन हाथ लुटायौ है ।
राधा कै संग…..(5)
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डार गले गलबहियाँ दोनों
एक रंग के फूल भये ,
इक दूजे के प्रेम रंग में
सुध बुध अपनी भूल गये ,
ठाड़े गोप गोपियाँ निरखैं
मन हरषौ सरसायौ है ।
राधा कै संग…..(6)
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तुम जीतीं हम हारे जुग जुग
जीवौ री तुम सब गोरी ,
बोलीं गोपी लला आइयो
फेर सबै खेलन होरी ,
छैला नै बरसाने में
होरी कौ रस बरसायौ है ।
राधा कै संग…..(7)
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दूजे दिन फिर नंदगाम कूँ
गोपिन कौ मिल टोल गयौ ,
बाबा ते जा फगुआ माँगौ
अमरत सौ हिय घोल गयौ ,
श्री राधे की कृपा भयी
ज्योती नै रसिया गायौ है ।
राधा कै संग …..(8)
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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