बोल की लब आज़ाद हैं तेरे
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है मीडिया।सरकार से सवाल करना प्रमुख कार्य।जनता की परेशानी से सरकार को अवगत करना उद्देश है इनका ।परन्तु हो क्या क्या रहा है।हाल ही में हुए एक सर्वे में पता चला कि भारतीय मीडिया का विश्व के 180 देशों म 139 वा स्थान है।पिछले साल के मुकाबले इस साल रैंकिंग और खराब हुई है।यह स्थान प्राप्त करने के लिये मीडिया ने अपनी साख दाव पर लगा दी अपनी विश्वनीयता खो के ये मुकाम पाया है।आज के दौर मे रिमोट का कुछ काम ही नही रह ।हर चैनेल पर वही चेहरा वही बातें।वही गाय गोबर, हिन्दू मुस्लिम, झूठ को सच ,न पूरे होने वाले वादा …चाटूकारिता का “गोल्डन पीरियड ” है यह।किस मुददे को उठाना है किसे नही बखूबी मालूम है इन्हे।वो मुद्दा बिल्कुल नही उठाना है जिससे सरकार को किरकिरी हो ।किसानों की बदहाली किसी से छुपी नही है।कोई ऐसा राज्य नही जहाँ किसान परेशान न हो।आत्महत्या का सिलसिला जारी है।परन्तु यह न तो मीडिया को दिख रहा न तो सरकार को न ही किसी और नेताओं को।उद्दोगपतियो की चिंता हो रहा ह बस ।उनका हज़ारों करोड़ माफ हो जा रहा है परंतु किसानों का नही ।उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी कर्ज़ माफी किया।सच कहें तो कर्ज़ माफी के नाम पर अपमान किया है।किसानों के 1पैसे 9पैसा 23 पैसा या कुछ रुपये… साहब वो किसान बैंक का उधार चुका सकता था परंतु अब इतनी बड़ी मेहरबानी कैसा भूले गा ये उद्धार को कैसे चुकायेग।इतना सब हुआ फिर भी मीडिया में ये मुद्दा भी नही टिक पाया।
कल (20 नवंबर)को ही अभी देश के कोने कोने से हजारों किसान दिल्ली मे अपनी बदहाली सुनाने एकत्रित हुवे परन्तु सरकार और मीडिया दोनो ने कोई ध्यान नही दिया।पद्मावती ने सबको पीछे कर दिया और सबसे गंभीर मुद्दा बन कर चोट करती रही।भारत के राजनेता और मीडिया दोनो आम जनता का विश्वास खोते जा रहे है
ये सब देखने के बाद याद आते हैं अहमद फ़ैज़…
बोल की लब आज़ाद है तेरे