बोलने को मिली ज़ुबां ही नहीं
बोलने को मिली ज़ुबां ही नहीं
कोई तुम सा यहाँ हुआ ही नहीं
जिसकी दीवारो छत में जिंदा हूँ
घर पुराना मेरा मिला ही नहीं
दोस्तों का हुजूम सड़कों पर
सोचती हूँ.. अभी थमा ही नहीं
छूटते वक्त की दरारों से
अब मेरा कोई झाँकता ही नहीं
जिसमें बचपन की कहानी बीती
वो शहर अब मेरा रहा ही नहीं..