मानवता
मानवता के मूल को, भूल गए हैं लोग।
जहां मनुजता है नहीं, वहां बसे हैं रोग।।
मानवता के सारथी, करते अदभुत काम।
पोषक बनते दीन के,हरते दुख अविराम।।
मानवता मन मोहनी, संतों का श्रृंँगार।
मानवता की छाँव में, सुखदायक संसार।।
मानवता जिनमें बसी,वो मानव धनवान।
मानवता ही मानिए,मानव का भगवान।।
मानवता मत छोड़िए, मानवता ही प्राण।
पापों से करती सदा, मानवता ही त्राण।।
मानवता को छोड़ कर, दानवता मत धार।
मौज कलि के काल से, मानवता दे तार।।
विमला महरिया “मौज”