बोरियत
लघुकथा
शीर्षक – बोरियत
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“व्हाट इस दिस मॉम, आप डेली रोटियाँ बनाकर रख देते हो, मुझे नहीं खाना ये बकवास रोटियाँ ,,,, . मै बोर हो गया हूँ रोटियाँ खाते खाते,,,, सुबह शाम रोटियाँ, रोटियाँ , बस रोटियाँ ,,, कभी तो कुछ टेस्टी सा बना लिया कीजिए l” – कहते हुये रोहित ने पिज्जा का ऑर्डर किया और झट से रोटियों को उठाकर घर के बाहर सीढ़ियों पर रख दिया l
कचरा बीनती हुई रमिया ने सीढ़ियों पर रखी रोटियाँ देखीं तो उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गई ,,,, आज वह कई दिनों के बाद ताजी रोटियाँ अपने बच्चो को खिलाएगी ,, — कोई देख न ले इसलिए जल्दी से रोटियाँ उठाईं और आँचल में छिपाकर अपने झोपड़े की और बढ़ गई l
झोपड़े में कदम रखते ही उसके बच्चों ने उसे घेर लिया l उसने झट पल्लू में से रोटियाँ निकाली और उनमें नमक लगाकर गोल – गोल रोल बना सभी बच्चो को पकड़ा दिया तो बच्चे मस्ती में उछलने लगे l
रमिया आज बहुत खुश थी क्योंकि भूख की वोरियत दूर हो गई थी इन रोटियों से…..
राघव दुवे