#बोध_काव्य-
#बोध_काव्य-
◆अंतर जीवन दर्शन का है◆
【प्रणय प्रभात】
◆ हम महाशक्ति के हैं सपूत, वो रक्तबीज की संतानें।
अभ्यस्त मारने के हैं वो, मर-मिट जाने को क्या जानें?
हम हैं प्रलयंकर के वंशज, औघड़दानी के अनुयायी।
वो नित्य हलाहल उगल रहे, हम कहलाते हैं विषपायी।
अंतर जीवन-दर्शन का है।।
◆ हम मर्यादा-पुरुषोत्तम से, एकल पत्नी-व्रतधारी हैं,
वो नारी-हित के हैं शोषक, अत्याचारी, व्यभिचारी हैं।
हम कृष्ण-कथा के जानकार,
जो कर्मयोग अपनाते हैं।
हम महारास के प्रेमी वो देहों पर रीझे जाते हैं।
अंतर जीवन-दर्शन का है।।
◆ इस ओर अलौकिक प्रेम सहित है मनोभाव में योगवाद,
उस ओर वासना का नर्तन, उस ओर रात-दिन भोगवाद।
हम तांडव करने में समर्थ, पर शांति-ध्वजा अपनाए हैं,
वो पीठ दिखाने वाले हैं, फिर भी भय बन कर छाए हैं।
अंतर जीवन-दर्शन का है।।
◆ हम दया-धर्म के ध्वजधारी, वो महा-अधर्मी पथ-भ्रष्टक।
वो दिशा-भ्रमित करने वाले, हम हैं नवयुग के दिग्दर्शक।
हम क्षमाशील, परहितकारी, वो विध्वंसक, अवसरवादी,
हम कृपावान हो कर कृतज्ञ, वो बस कृतघ्नता के आदी।
अंतर जीवन-दर्शन का है।।
◆ वो कपट-नीति के पोषक हैं, षड्यंत्रों को अपनाते हैं।
हम आत्म-विजय करना चाहें, तो विश्व-विजय कर जाते हैं।
हम सब खो कर पाते हैं जग, वो सब पा कर भी हतभागे।
हम महावीर, हम बुद्ध मगर, वो दमन-नीति में है आगे।
अंतर जीवन-दर्शन का है।।
◆ देवासुर-समर सर्वदा से, इस धरती पर चलता आया,
सागर सम मानस-मंथन कर, फिर सोच कि खोया या पाया।
जब तक अमृत ना पा जाए, तब तक मंथन को जारी रख।
तू अमर-कथा का श्रोता है, नव-जीवन की तैयारी रख।
अंतर जीवन-दर्शन का है।।
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