बोध कैसे जगे !
मैं बोलता हूँ….!
लोग भड़क जाते हे !
शताब्दियों से सोए है !
जागरण का नाम नहीं !
पाखंड है मृत कपि-ललाट,
विश्वास नहीं होता,
पकड़े हो खुद से ..!
छोड़ना भी तुम्हें पड़ेगा..!
आप्त-वचन नहीं आपके !
तराशने पड़ेंगे !
लिखा हुआ तो बहुत है !
दो कदम चलना पड़ेगा !
अपने साथ !
भूख है तो खा लेना !
नींद है तो सो लेना !