बोझ पुराना !आदत ढोने की ! छूटे कैसे ???
कलियुग का तो बहाना है,
अतीत से मिला जो ,
बिना आत्मसात् स्वीकार करना है !
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भावनाएं टिकी है जिस पर,
झूट न हो जाएं उनकी कही हुई,
आप्त वचन जिसे कहते है !
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बलि चढ़ गये आज हमारे सपने !
वरन् कौन कहता है !
आज उनसे कम क्षमता हमारी है !
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नहीं है गर हम चैतन्य पर डटे हुए,
क्यों बचा लेते है मरणासन को !
ठीक है सुविधाएं है गर !
प्रयोग मे कैसा अचरज है !
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फिर कौन सतयुगी !
कौन त्रेता ! कौन द्वापर !
कैसा कलियुग !
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आप पर निर्भर है !
आप वर्तमान कैसे जीते है !
चैतन्य से जुडकर,
मन शरीर वा साइंस से जुडकर !!!