बैर नहीं प्रेम
रचना नंबर (9)
बैर नहीं प्रेम
विधा…मनहरण घनाक्षरी
नोक-झोंक काट-छांट,
राग-द्वेष छोड़-छाड़,
प्रेम-भाव बहाइए,
सँवरेगी ज़िन्दगी।
राम-नाम कृष्ण-जाप,
धर्म-कर्म ध्यान-ज्ञान,
निश-दिन विचारिए,
निखरेगी बन्दगी।
अपना-पराया नहीं,
अच्छा-बुरा सब सही,
निरपेक्ष रहने में,
दूर होगी गन्दगी।
सुख-दुख माया-मोह,
जीवन-मरण भोग,
तेरा-मेरा त्याग करो,
प्रसन्न बजरंगी।
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर