बैठ सम्मुख शीशे के, सखी आज ऐसा श्रृंगार करो…
बैठ सम्मुख शीशे के, सखी आज ऐसा श्रृंगार करो…
खूबियों के साथ, अपने कमियों से भी प्यार करो !
बाह्य आंडबर से दूर, अपने अंर्तमन का आह्वान करो…
छोड़ कर सारी चिंताओं को, बस खुद को स्वीकार करो !
~निहारिका
बैठ सम्मुख शीशे के, सखी आज ऐसा श्रृंगार करो…
खूबियों के साथ, अपने कमियों से भी प्यार करो !
बाह्य आंडबर से दूर, अपने अंर्तमन का आह्वान करो…
छोड़ कर सारी चिंताओं को, बस खुद को स्वीकार करो !
~निहारिका