बैठे-बैठे
बैठे – बैठे सोच रहे पर्वत पे हनुमान
जाति मेरी ढूंढ रहे कलयुग के इंसान
कलयुग के इंसान की फितरत है बेमानी
जिससे उनका हित सधे कहते वही कहानी
मेरी तो बीत रही राम नाम जपते – जपते
पर तेरा क्या करूं बस यही सोच रहा बैठे-बैठे ।
बैठे – बैठे सोच रहे पर्वत पे हनुमान
जाति मेरी ढूंढ रहे कलयुग के इंसान
कलयुग के इंसान की फितरत है बेमानी
जिससे उनका हित सधे कहते वही कहानी
मेरी तो बीत रही राम नाम जपते – जपते
पर तेरा क्या करूं बस यही सोच रहा बैठे-बैठे ।