“बेवफ़ाई”
“बेवफ़ाई”
मुहब्बत में नज़र फ़िसली, दिले नादान ना माना।
बसाया रूप आँखों में लुटाया प्यार दीवाना ।
निगाहें फेरकर उसने हवा का रुख बदल डाला।
चुराए ख़्वाब आँखों के कहूँ किससे ये अफ़साना।
गिराके बूँद सावन में जलाया आशियाँ मेरा।
लगाके आग दरिया में मिला क्या तुझको ऐ जाना ?
किया छलनी कलेजा बेवफ़ा ने तीर से मेरा।
सुनाऊँ मैं भला कैसे जुदाई का सबब जाना!
यही सब्रे मुहब्बत इंतहाँ तुझको बतानी है।
इबादत कर रहा तेरी, जुनूँ है इश्क को पाना।
रहो आबाद करके बेवफ़ाई तुम सनम हमसे।
निभाएँगे सदा तुमसे मुहब्बत मरके ऐ जाना!
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-“साहित्य धरोहर”
महमूरगंज ,वाराणसी(मो.-9839664017)