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12 Feb 2020 · 1 min read

बेलन का कहर (कुण्डलिया)

बेलन से डरते यहीं, कहता सच्ची बात।
कपड़ा फीछत दिन गया, पाव दबाते रात।।
पाव दबताते रात, कठिन है जीवन इनका।
बिखर गये सरकार, बिनते तिनका तिनका।।
कहे सचिन सुन भ्रात, पड़ोसन इनकी हेलन।
जिसके कारण नित्य, खिलाती भाभी बेलन।।

अच्छे अच्छों की सही, घीग्घी बधती आज।
हर घर में बस बेलन का, दिखता है जी राज।।
दिखता है जी राज, कहाँ समझे अधिवक्ता।
बनते सभी गुलाम, हो वक्ता या प्रवक्ता।।
कहे सचिन सुन भ्रात, दिखे अधिवक्ता कच्चे।
बेलन खाकर यार, कहे सब अच्छे अच्छे।।

बेलन के बस जोर से, डरने लगा वकील।
न्यायधीश से कह रहा, अच्छा है मुवक्किल।।
अच्छा है मुव्वकिल, डरूं पत्नी से अपने।
पत्नी की सरकार, दिखे बेलन के सपने।।
अधिवक्ता को आज, लगे वादी ही हेलन।
बीवी है विकराल, दिखे बेलन ही बेलन।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार

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