बेरोजगारों का दर्द
न समझे दर्द कोई भी कभी बेरोजगारों का।
मिले उनको नहीं यारों, कहीं मौसम बहारों का।
व्यथा क्या है सबब क्या है न कोई पूछने आता-
रुका है ब्याह भी देखो अभी कितने कुँवारों का।
न समझे दर्द कोई भी कभी बेरोजगारों का।
मिले उनको नहीं यारों, कहीं मौसम बहारों का।
व्यथा क्या है सबब क्या है न कोई पूछने आता-
रुका है ब्याह भी देखो अभी कितने कुँवारों का।