बेरोजगारी
#ये_लड़के_बेरोजगारी_का_बड़ा_मोल_चुकाते_है
ये कैसा युग आया है अब माता-पिता ने बेटियाँ नही बेरोजगार बेटों के बोझ से कंधा झुकाया है
बेटियाँ नाज़ों से पली फिर एक दिन उनकों ब्याहा हैं
पर बेटों की चिंता में उम्र का कितना हिस्सा गंवाया है
बेटे भी चिंता में रात दिन घुलते है रोजगार मिले उन्हें
जी जान से वो कोशिश करते है ।
पर मायूस लौट पिता की सूनी आँखे देख एक बार
फिर से वो जीते जी मरते हैं आखिर क्या जवाब दे
हर दिन इसी उधेड़ बुन में वो बेचारे रहते है ।
कितनों ने तो खुद को फंदे से लटकाया है
राम जाने ये कैसा कलयुग आया है…
सभी को बेहतर बनने की होड़ लगी हैं पीछे कोई
छूट के गिर जाए आखिर किसको पड़ी है।
माँ ने गहने बेच पिता ने पढाई कर्जा लेकर भी
पूरी करवायी हैं फिर भी बेटों के नसीब मे लिखीं
जानें क्यूँ बेरोजगारी हैं।
रात -दिन एक कर पढ़ लिख जब वो इस लायक बनते हैं
माता पिता को हर सुख दे एक सपना आँखों में पालते हैं
किसी प्रेमिका के सपने भी इनके हिस्से ना आते है
प्रेम भी बेचारे ये कहाँ कर पाते है
तब उनके हिस्से आती सिर्फ बेरोजगारी है।
दोगले समाज वाले भी बेरोजगारी का ठप्पा लगाते है
जैसे कोई पाप का कलंक इनके माथे पे लिख जाते है।
टूटे सपने, सूनी आँखे, टूटती उम्मीद, बिखरे से
लोगों से वो खुद को छुपाते फिरते हैं, ये लड़के भी ना
अकेले मायूस से कितना कुछ सहते हैं।
दस वेकेंसी में दस लाख लोगों की भावनाओं से ये लोग
खेल जाते हैं ये लड़के भी एक तिनके सी उम्मीद में
क्या से क्या कर जाते है ।
कौन है जो इनकी भावनाओं का मोल समझेगा
हर दिन टूटते बिखरते इनके आसुओं को कौन पोछेगा
कितनी ही जिम्मेदारियाँ काँधो पे लिए ये मुस्कुराते है
ये लड़के भी ना बेरोजगारी का बहुत बड़ा मोल चुकाते हैं।
सच में ये लड़के भी ना जीवन में बहुत बड़ा मोल
चुकाते है….
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