बेमेल दोस्त
वर्षो का याराना,साथ उठना, बैठना,खाना ,आना -जाना फिर भी बिना बात के रूठ जाना,सोचने पर मजबूर करता है,क्या ये सचमुच का याराना है या बेमेल गठबंधन,मतलब के लिए मजबूरी की दोस्ती। कौन है दोषी दोस्त या मैं स्वयं ? हो सकता है मेरा दोष ज्यादा हो,लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बात ही न की जाये।अगर सच्ची दोस्ती है तो बताने में परेशानी क्या है,कि आपने ये गलत किया।लेकिन नहीं नाक ऊंची है बात ही नहीं करनी। कई बार ऐसा हो गया। और अब शायद पानी सिर से गुजर गया। बेमेल दोस्ती को तोड़ने का मन मैंने बना लिया। दोस्ती या तो निभाना अच्छा,या फिर ढोने से तोड़ना अच्छा।।