बेपऩाह
मेरे एक अज़ीज़ के ज़नाज़े सफर में एक कुत्ता शामिल देखा।
इल्म हुआ फ़ौते शख्स उसका मालिक हुआ करता था।
कब्रगाह में सुप़ुर्दे ख़ाक कर सब लौट चले।
पर वो बेज़ुबान अपने मालिक की क़ब्र पर डटा रहा।
न लौट जाने की अपनी ज़िद पर क़ायम अड़ा रहा।
क़ब्र की रखवाली ख़ातिर द़ायम वहीं खड़ा रहा।
इस इन्तज़ार मे कि उसके मालिक कभी तो लौटेगें
नही तो वो वहीं खड़ा खड़ा फ़ना होकर ऱूहे मालिक से जा मिलेगा।