बेनाम रिश्ता भाग =1
बात करीब साढे चार साल पहले की है, सोनू अकेला पर खुश था, और नीतू शादीशुदा…
जब नीतू सोनू की जिन्द्गी में आयी तब वो किसी और की हो चुकी थी, सोनू नीतू से उमर में 6 साल छोटा था ! दोनों बस दोस्त बने, दर्द को बांटने वाले दोस्त… एक दूसरे की केयर करने वाले ! पर पता ही नहीं चला कब प्यार करने लगे ! मन से दोनों एक हो गये कभी गलत नहीं सोचा एक दूसरे के बारे में… मन मिले और कब तन मिल गये पता ही नहीं चला ! जबकि दोनों साल भर में एक बार ही मिलते थे, लेकिन फोन पर बात अक्सर हो जाती थी मतलब रोज़ दिन मे 2 बार …
नीतू भी अपनी शादी से खुश नहीं थी क्युकिं उसके कृष्ण कन्हेया की कई गोपिया थी… ना उसे कभी वो प्यार मिला ना अपनापन ! जब वो मां बनी तो उसके पति और उसके बीच कुछ सही हुआ और अब काफ़ी अच्छा था दोनों के बीच ! पर प्यार की कमी बनी रही… जब दोनों मिले तब नीतू की 2 साल की बेटी थी ! नीतू मानती थी कि उसकी जिन्द्गी की सारी खुशियां सोनू के साथ और प्यार के सहारे ही मिली हैं ! पर हाल ये थे कि दोनों ही ना इक दूसरे को अपना पा रहे थे ना छोड़ पा रहे थे ! और सोनू जिसके लिये प्यार कभी सिर्फ बकवास और फ़ालतू की चीज रहा पर उससे दोस्ती करने के बाद प्यार को महसूस किया !
लेकिन
सोनू ने एक ऐसे इंसान से प्यार किया, एक ऐसे इंसान को सबकुछ समझा, जो सोनू का कभी था ही नहीं, जिस्पे हक ही नहीं था कभी ”
बल्कि सोनू उसकी जिन्द्गी में दूसरा बनके आया कि उसकी जिन्द्गी 2 जगह बंट गयी – प्यार और जिम्मेदारी !
आज नीतू अपने पति की थी भी और नहीं भी लेकिन सोनू की नहीं थी ! सोनू बोले मेरे साथ रूक जाओ कुछ समय, तो सोचना पड़ता था क्युकिं रिश्ता छुपा हुआ था ! डर था किसी के सामने ना सच खुल जाये कि दोनों एक दूसरे को चाहते हैं ! किसी को बता नहीं सकते थे ! लेकिन सोनू की तो हर तरफ़ से हार थी, ना वो नीतू अपनी कह सकता था , ना उसका बन के रह सकता था ! ना उससे कुछ कहने का अधिकार था, ना उसपे कोई अधिकार था !
फ़िर नीतू के पास समय बहुत कम रहता था सोनू के लिये, अपने पति के साथ वक्त गुजारने के कारण एक दिन नीतू के पास बिल्कुल समय नहीं था सोनू के लिये… तब सोनू ने सोचा कि रोज़ ऐसा ही होता है नीतू के पास उसे छोड़ कर सबके लिये समय है, सच जानते हुए भी
” क्युं मेनें उसे अधिकार देकर रखे हैं, खुद पे… दिल पे… दिमाग पे ???
अगर कभी वो मुझे मिलती भी है अकेली तब ही वो मेरी बनकर रहती है ! बाकी तो मुझे उम्मीद भी नहीं है उससे, लेकिन खुद पे यकीन नहीं आता कि मेने क्या किया खुद के साथ, उस इंसान को अपना सब कुछ माना जिसके लिये में कभी सबकुछ नहीं हो सका था, जानता था और आज भी मानता हुं कि गलत इंसान से प्यार किया है जो मेरा कभी नहीं था !
? उसने भी प्यार किया लेकिन आखिरी में,
मैं किसी का पहला प्यार बनना चाहता था, लेकिन मेरा ही पहला प्यार मेरा नहीं हुआ ! मेनें प्यार किया था बिना शर्त और निश्वार्थ के, लेकिन हालातों और जरूरतों ने मुझे स्वार्थी बना दिया है ! और अब मुझे ….. मैं कभी ऐसा नहीं था जेसा में आज हुं, मैं ऐसे इंसान के साथ शारीरिक रूप से एक हुआ/जुडा… जिसके शरीर पर किसी और का हक था/है लेकिन मेरे शरीर और दिल पर जिसने हक जमाया और मेने ज़माने भी दिया, दुख मुझे इस बात का नहीं है ! दुख इस बात का है कि सच सामने होते हुए भी मेने उस सच को क्युं नहीं समझा ! लेकिन अब क्या करुं, केसे मान्गू अपने प्यार का हक ? उसका साथ… अलग हो जाऊ तो कुछ दिन परेशानी फ़िर आदत बन जायेगी लेकिन वही परेशानी झेल्ने की हिम्मत कहा से लाऊ !
?
नहीं जानता उसने मेरी जिन्द्गी तबाह की या मेने उसकी… लेकिन वो कहती है कि जबसे तुम मेरी जिन्द्गी में आये हो मेने जीना सिखा है, मुस्कुराना सीखा है ! तुम्हारे साथ रहना मुझे बहुत भाता है, तुम्हारे गले लगना, गोदी में सिर रखकर सोना सब बहुत प्यारा है ! और में चाहता हुं कि जब हम तन मन से जुड़ ही गये हैं तो एक हो जाये ! क्युकी इस तरह तीन लोगों की जिन्द्गी बर्बाद हो रही है ! ”
लंबा-चौडा सोचने बाद जब फोन की घंटी बज़ी तो विचारो की श्रंखला टूटी और तुरंत ही फोन उठाया…” सौरी जान, बहुत कोशिश की लेकिन ये यहीं थे तो फोन ना कर सकी !” जेसे ही इतने शब्द सोनू के कानों में पडे तो गुस्से को दिल में दबाकर बोला – मैं भी बिजी था, अभी फ्री हुआ हुं , कोई बात नहीं !
वक्त गुजरा और अक्सर समय को लेकर दोनों के बीच झगडे बड़ने लगे, नीतू को अपने पति को समय देना पड़ता था और सोनू को भी ! सोनू को नीतू चाहिये थी और नीतू को पति-बच्चे, परिवार और सोनू सब कुछ ! और
एक दिन 5 साल पुरानी दोस्ती जो अब बेबुनियाद और बेनाम रिश्ते को समेटे थी वो टूट गयी ! और रिश्ते के साथ साथ दो संगदिल इन्सानों को तोड़ गयी ! जीने और मुस्कुराने की सारी वज्ह अब दोनों के लिये खतम हो गयी थी ! सोनू से कहीं जायदा कुछ नीतू की जिन्द्गी से गया था, खत्म हुआ था लेकिन मिला भी नीतू को ही बहुत कुछ सिवाय एक ऐसे इंसान के जो सिर्फ उसी का हुआ करता था ! दुख मनाऊ तो कितनी बातों का और किस बात का – अक्सर सोनू यही सोचता था ?
वक्त गुजरा और दोनों फ़िर मिले हर साल की तरह… शायद इक नयी कहानी और रिश्ते की शुरूआत हो !
लेखिका- जयति जैन, रानीपुर झांसी