बेताब कलम
कलम भी चलने को बेताब हे . और लब्ज होटो से फिसलने को ,
अब तो कागज़ का पन्ना भी थम सा गया हे कलम की नोक को चूमने को
अल्फाज़ मेरे चारो और बिखरे पड़े हे . और पड रहा हु किसी मशहूर कवी की कविताओ को…
कलम भी चलने को बेताब हे . और लब्ज होटो से फिसलने को ,
अब तो कागज़ का पन्ना भी थम सा गया हे कलम की नोक को चूमने को
अल्फाज़ मेरे चारो और बिखरे पड़े हे . और पड रहा हु किसी मशहूर कवी की कविताओ को…