बेडी परतंत्रता की 🙏
बेडी परतंत्रता की 🙏
जीवन पथ रक्षक मौन खड़ा था
उज्जवल भविष्य पाश से बंधा
कब हर्षित होगी नारी बेचारी
परतंत्रता की बेड़ी जकड़ रही
प्रीत प्रतिज्ञा आस पास छोड़
जंजीर तोड़ने की ताक में नारी
आओ चलें पर चले कहां सोच
अकेली आँसू बहा रही बेचारी
मेंहदी की रंग मिट रही थी पर
हाथ कफ़न लिए खडी थी नारी
स्वतंत्रता की सुलगी चिनगारी
कूद पड़ी थी भारत नर-नारी
संगीन नोंकों पर उछाल रही
गद्दारों को सीख सिखा रही थी
भारत माता की याद दिला रही
उठा भाला तलवार कुठार आज
भगा फिरंगी छोड़ो देश हमारी
आजादी है जन्मसिद्ध अधिकार
नारी की हुंकार सुन जग उठे थे
सकल गाँव नगर सारे हिन्दुस्तान ।
टी.पी. तरुण