बेटी
हाइकु में कविता
“बेटी”
माँ का सपना,बाबुल के अँगना,जन्मी ये कली।
हौले-हौले ये,बाबुल की अँगुली, थाम के चली।
रँठ-रूँठ के, कनिया पे चढ़ के, बाहों में पली।
तोतली बोले,कोयल सी बोली, मिश्री की डली।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज ,वाराणसी (मो.-9839664017)