“बेटी”
((((((( बेटी )))))))
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जब शाम को घर को आऊ,
वो दौड़ी-दौड़ी आए….
लाकर पानी पिलाए,
बेटी…हॉ बेटी….,
फिर सिर को मेरे दबाए,
दिन भर का हाल बताए..
फिर छोटी-छोटी ख्वाहिश,
अपनी मुझे सुनाए….
बेटी….हॉ बेटी…..
दिन हर दिन बदला जाए,
फिर वक़्त बदल ही जाए..
वो रोटी मुझे बनाए…
बेटी…हॉ बेटी….
फिर सजके बारात एक दिन,
उसको लेने आए…
और करके आँखे फिर नम,
वो दूर चली ही जए..
बेटी.. हॉ बेटी…
फिर शाम को घर जब आऊँ,
मेरी आहट उसे बुलाए..
मेरी नज़र ढूंढ न पाए,
बेटी.. हॉ बेटी….
((((( ज़ैद बलियावी)))))