बेटी
बहुत सिमट गयी अब बिखरना चाहती हूं।
घुट घुट कर बहुत जी लिया।
अब दुनिया को घूमना चाहती हूं।
नदी की जल की तरह कल कल कर
यहां से वहां बहना चाहती हूं।
दो पल के लिए ही सही
ख्वाबों में आना चाहती हूं।
मस्तियां तो सबो ने की।
मैं तो दुनिया में नाम कमाना चाहती हूं।
तकलीफें तो बहुत है सही
लेकिन मैं दुनिया को दिखाना चाहती हूं ।
सुशील कुमार चौहान
फारबिसगंज अररिया बिहार