बेटी के दो पाँव
लहरें उठें दुलार की, सजे ह्रदय का गाँव !
आँगन में जब भी पड़ें, बेटी के दो पाँव !!
हो जाता है हाथ का,व्यंजन भी बेस्वाद !
बेटी की जब भी कभी,आजाती है याद !!
सुता पराई हो गई, …..रहे नही ये भान !
ले आती है आज भी,माँ उसका सामान !!
रमेश शर्मा.
सुता -बेटी